कोटा में मृत मवेशियों के लिए नहीं मिल रही जगह:गौशाला और पशु हॉस्पिटल से मरे जानवर नहीं उठाए जा रहे; निगम जमीन तलाश रहा
कोटा नगर निगम की जमीन पर मृत मवेशियों को फेंकने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा था। वर्तमान में आंवली में मृत पशुओं को डलवा दिया गया था, जिसका काफी विरोध हुआ। माहौल बिगड़ता देख नगर निगम को बैकफुट पर आना पड़ा था। स्थिति यह हो गई है कि शहर से मृत मवेशी उठाए नहीं जा रहे हैं। विरोध के बाद निगम की जमीन पर मवेशियों को डालना बंद कर दिया गया। अब समस्या दूसरी जगह तलाश करने की आ रही है। निगम ने एक दूसरी जगह देखी भी लेकिन वहां भी लोगों की आपत्तियां आ गई। ऐसे में निगम अभी तक सिर्फ जगह ही देखने में जुटा है और शहर में गौशाला और पशु हॉस्पिटल से मृत मवेशी उठाए नहीं जा रहे हैं। केडीए ने जमीन बताई, हर जगह आई आपत्ति नगर निगम ने केडीए से जमीन मांगी। केडीए ने पहले 3 जगह जमीन बताई लेकिन तीनों ही जगह पर आपत्तियां आ गई। इसके बाद 2 और जगह देखी गई लेकिन वहां भी कोई नतीजा नहीं नकला। मृत पशुओं के निस्तारण के लिए प्रदेश के सभी बड़े शहरों में नगर निगमों ने अपने स्तर पर अलग-अलग व्यवस्था कर रखी है। जोधपुर में साल 2008 से मृत पशुओं का इंसीनरेटर के माध्यम से साइंटिफिक तरीके से अंतिम संस्कार किया जा रहा है। जबकि जयपुर सहित कई शहरों में मृत पशुओं को दफनाने की व्यवस्था है। मृत पशुओं की हड्डियों और खाल का ठेका देता निगम कोटा में पिछले कई सालों से मृत पशुओं के निस्तारण के बजाय हड्डियों व खाल का ठेका करता है और ठेकेदार से राशि ली जाती है। इस साल निगम ने ये ठेका 4 लाख रुपए में दिया था। मृत पशुओं के निस्तारण का एक तरीका हो सकता है, उसमें मृत मवेशियों के लिए इंसीनरेटर प्लांट लगाया जा सकता है लेकिन उसका खर्चा दस करोड़ का है।
कोटा नगर निगम मृत मवेशियों के लिए जगह तक नहीं देख पा रहा है। निगम की खुद की जमीन पर तो लोगों की आपत्ति के बाद मृत मवेशियों को डालना बंद किया जा चुका है वहीं जो दूसरी जगह निगम देख रहा है वहां भी आपत्तियां आ रही है। इधर, जो मृत पशुओं के निस्तारण का एक तरीका हो सकता है, उसमें मृत मवेशियों के लिए इंसीनरेटर प्लांट लगाया जा सकता है लेकिन उसका खर्चा भी दस करोड का है। ऐसे में निगम अभी तक सिर्फ जगह ही देखने में जुटा है और शहर में गौशाला और पशु अस्पताल से मृत मवेशी उठाए नहीं जा रहे हैं। अपनी तरफ से कोशिश कर जैसे तैसे मृत मवेशियों को यहां के स्टाफ उठवा रहे हैं। लेकिन वह भी नाकाफी है। शहर में मृत पशुओं के निस्तारण की व्यवस्था सुधर ही नहीं पा रही। नगर निगम ने इसके लिए केडीए से जमीन मांगी। केडीए ने पहले 3 जगह जमीन बताई, लेकिन तीनों ही जगह पर आपत्तियां आ गई। इसके बाद 2 और जगह देखी गई लेकिन वहां भी कोई नतीजा नहीं नकला। मृत पशुओं के निस्तारण के लिए प्रदेश के सभी बड़े शहरों में नगर निगमों ने अपने स्तर पर अलग-अलग व्यवस्था कर रखी है। जोधपुर में साल 2008 से मृत पशुओं का इंसीनरेटर के माध्यम से साइंटिफिक तरीके से अंतिम संस्कार किया जा रहा है, जबकि, जयपुर सहित कई शहरों में मृत पशुओं को दफनाने की व्यवस्था है। जबकि कोटा में पिछले कई सालों से मृत पशुओं के निस्तारण के बजाय हड्डियों व खाल का ठेका करता है और ठेकेदार से राशि ली जाती है। इस साल निगम ने ये ठेका 4 लाख रुपए में दिया था। वर्तमान में आवंली में मृत पशुओं को डलवा दिया था। जिसका काफी विरोध हुआ और माहौल बिगड़ता देख नगर निगम को बैकफुट पर आना पड़ा। स्थिति यह हो गई है कि शहर से मृत मवेशी उठाए नहीं जा रहे हैं।