भारत या पाकिस्तान, किसके ज़्यादा क़रीब थीं ख़ालिदा ज़िया?
साल 2012 में जब ख़ालिदा ज़िया तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिली थीं, तो उन्होंने मनमोहन सिंह से कहा था कि वो खुले दिमाग़ के साथ भारत आईं हैं और उनकी यात्रा का उद्देश्य पुरानी कड़वाहट और ज़ख़्मों पर मरहम लगाना है.
भारत या पाकिस्तान, किसके ज़्यादा क़रीब थीं ख़ालिदा ज़िया?

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इमेज कैप्शन, अपनी 2015 की बांग्लादेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ालिदा ज़िया से भी मुलाक़ात की थी. तब वे विपक्ष की नेता थीं. (फ़ाइल फ़ोटो)
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- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी हिन्दी
- 3 घंटे पहले
ख़ालिदा ज़िया आख़िरी बार वर्ष 2012 में भारत आईं थीं, वो भी बांग्लादेश में विपक्ष की नेता के तौर पर.
उनको भारत सरकार ने आमंत्रित किया था और भारत के हर बड़े नेता ने उनके साथ मुलाक़ात की थी.
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें दिन के खाने पर बुलाया था.
इसके अलावा उनकी मुलाक़ात उस समय की विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से भी हुई थी.
उस समय के विदेश मंत्री सलमान ख़ुर्शीद के साथ हैदराबाद हाउस में उनकी लंबी बातचीत हुई थी.
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ख़ालिदा ज़िया के दौरे का अंत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उस समय के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ मुलाक़ात के साथ हुआ था.
इससे पहले ख़ालिदा 2006 में भारत आईं थीं, जब वे बांग्लादेश की प्रधानमंत्री थीं. इस यात्रा का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला था.
मीडिया में ख़बरें आई थीं कि भारत ने उनके प्रति किसी तरह की गर्मजोशी नहीं दिखाई थी, क्योंकि उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों के कई अनसुलझे मुद्दों जैसे असंतुलित व्यापार, ऊँची टैरिफ़ दर, नदियों के पानी को बाँटने जैसे मुद्दों को उठाया था.
भारत ने इस बात पर चिंता प्रकट की थी कि बांग्लादेश ने पूर्वोत्तर के अलगाववादी तत्वों की ओर से उसकी ज़मीन के इस्तेमाल को हतोत्साहित नहीं किया है.
भारत ये भी चाहता था कि बांग्लादेश उसे पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़ने के लिए अपनी भूमि के इस्तेमाल की अनुमति दे. ये सब मुद्दे सुलझ नहीं पाए थे और बातचीत में गतिरोध पैदा हो गया था.
भारत की यात्रा के बाद ख़ालिदा ज़िया पाकिस्तान के दौरे पर निकल गई थीं.
'बेगमों की लड़ाई'

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इमेज कैप्शन, बेगम ख़ालिदा ज़िया और शेख़ हसीना
ख़ालिदा ज़िया और शेख़ हसीना के बीच राजनीतिक लड़ाई को 'बेगमों की लड़ाई' की संज्ञा दी जाती रही थी.
इस लड़ाई की नींव 1975 में रख दी गई थी, जब शेख़ हसीना के पिता और 'बांग्लादेश के राष्ट्रपिता' कहे जाने वाले शेख़ मुजीबुर रहमान की एक सैनिक विद्रोह में हत्या कर दी गई थीं.
इस हत्याकांड में शेख़ हसीना और उनकी बहन शेख़ रेहाना को छोड़कर उनके परिवार के सभी सदस्य मारे गए थे.
उस समय ख़ालिदा ज़िया के पति ज़िया उर रहमान बांग्लादेश के उप सेनाध्यक्ष थे. तीन महीने बाद बांग्लादेश की सरकार पर उनका नियंत्रण हो गया था.
वर्ष 1981 में एक और सैनिक विद्रोह में जनरल ज़िया की भी हत्या कर दी गई थी.
उसके बाद उनकी पत्नी ख़ालिदा ज़िया ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का नेतृत्व संभाल कर हुसैन मोहम्मद इरशाद की सरकार का विरोध किया था.
इरशाद के विरोध में ख़ालिदा और हसीना कुछ समय के लिए एक मंच पर भी दिखाई दी थी. लेकिन उसके बाद के सालों मे एक बार ख़ालिदा, तो दूसरी बार हसीना ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली.
ख़ालिदा ज़िया 1991 से 1996 और फिर 2001 से 2006 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं.
वर्ष 2008 में सत्ता में आने के बाद हसीना ने बीएनपी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की थी.
ख़ालिदा ज़िया को भी भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया था.
बीएनपी का मानना है कि ये सब राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किया गया था.
भारत की ख़ालिदा ज़िया से संबंध सुधारने की कोशिश

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इमेज कैप्शन, 2012 में भारत के दौरे पर नई दिल्ली के हैदराबाद में ख़ालिदा ज़िया का स्वागत करते भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद (फ़ाइल फ़ोटो)
जब ख़ालिदा ज़िया की राजनीतिक विरोधी शेख़ हसीना 2008 में सत्ता मे आईं थीं, तो उन्होंने पहला काम भारत की यात्रा कर उसके साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने का किया था.
उन्होंने भारत को आश्वस्त किया था कि बांग्लादेश की भूमि का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ चरमपंथी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा.
बांग्लादेश ने वहाँ रह रहे कुछ चरमपंथी नेताओं को हिरासत में लेकर भारत को सौंपा भी था.
लेकिन तब भी नदियों के पानी के बँटवारे का मुद्दा सुलझाया नहीं जा सका था, क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बात पर आपत्ति उठाई थी कि इस मामले में उनसे सलाह लिए बग़ैर कोई फ़ैसला नहीं हो सकता.
बांग्लादेश के प्रमुख अख़बार 'द डेली स्टार' के 4 नवंबर, 2012 में छपे अपने लेख 'ख़ालिदा ज़िया टेम्पटिंग हिस्ट्री' में बांग्लादेश के पूर्व राजनयिक अशफ़ाकुर रहमान ने लिखा था, "ख़ालिदा ज़िया का इतनी गर्मजोशी से स्वागत करने के पीछे भारत की मंशा थी कि अगर वो सत्ता में दोबारा आती हैं, तो भारत-बांग्लादेश संबंधों को पटरी में लाने में पहले का इतिहास आड़े न आए. ख़ालिदा ज़िया के भारत की मेहमाननवाज़ी स्वीकार करने के पीछे कारण था कि क्षेत्र की तेज़ी से बदलती हुई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में बांग्लादेश नहीं चाहता था कि उसे क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग का लाभ न मिले. ख़ालिदा ज़िया के पति और बीएनपी के संस्थापक राष्ट्रपति ज़िया ने ही सार्क की अवधारणा दे कर क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में पहल की थी."
भारत की ख़ालिदा को साधने की कोशिश

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इमेज कैप्शन, जब ख़ालिदा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिली थीं, तो उन्होंने उनसे कहा था कि वो खुले दिमाग़ के साथ भारत आईं हैं.
भारत के उलट चीन ने हमेशा बांग्लादेश के राजनीतिक दलों से संपर्क बनाए रखा है चाहे वो सत्ता में रहे हों या विपक्ष में.
ढाका के राजनीतिक हलकों में अक्सर भारत के ख़िलाफ़ शिकायत की जाती रही है कि भारत ने ज़्यादातर अवामी लीग से ही संपर्क बनाने पर ज़ोर दिया है, चाहे वो सत्ता में रहे हों या विपक्ष में.
बीएनपी जब सत्ता में नहीं रहती है, तो उनका उनके प्रति रवैया उदासीनता का ही रहता था.
जानकारों का मानना था कि इस आलोचना को देखते हुए ही ख़ालिदा ज़िया को उस समय भारत आमंत्रित किया गया था जब वो सत्ता में नहीं थीं.
जब ख़ालिदा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिली थीं, तो उन्होंने मनमोहन सिंह से कहा था कि वो खुले दिमाग़ के साथ भारत आईं हैं और उनकी यात्रा का उद्देश्य पुरानी कड़वाहट और ज़ख़्मों पर मरहम लगाना है.
भारत आने से पहले ख़ालिदा ने एक लेख में लिखा था, "हमारे दोनों देशों में ऐसी ताक़तें हैं, जो डर के मनोविज्ञान का सहारा लेकर आपसी शक और अविश्वास को बढ़ावा देती रही हैं और अब भी दे रही हैं. समय की मांग है कि हम अपनी सोच को बदलें. ये धारणा बदली जानी चाहिए कि भारत अवामी लीग के अधिक नज़दीक है और बीएनपी भारत विरोधी है."
भारत के ख़िलाफ़ बयान

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इमेज कैप्शन, भारत को ख़ालिदा ज़िया और जमात ए इस्लामी की नज़दीकी नागवार गुजरी थी
दिल्ली में भी इस यात्रा को सफल यात्रा माना गया था, लेकिन उनके बांग्लादेश लौटते ही उन्होंने एक तीखा वक्तव्य देकर भारत की समझ में सारे किए धरे पर पानी फेर दिया था.
ख़ालिदा ने कहा था कि 'शेख़ हसीना भारत की कठपुतली हैं.'
लेकिन भारत को इससे भी ज़्यादा नागवार गुज़रा था ख़ालिदा और भारत के धुर विरोधी जमात ए इस्लामी की नज़दीकी.
जमात ने सरेआम वक्तव्य दे कर शेख़ हसीना की तुलना सिक्किम के पहले मुख्यमंत्री काज़ी लेन्डुप दोरजी से की थी, जिन्होंने भारत में सिक्किम के विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
लेकिन जब ख़ालिदा ज़िया ने ये बात दोहराते हुए कहा, "क्या आप ग़ुलाम बनना चाहते हैं? क्या आप पिट्ठू बनना चाहेंगे? ये ग़ुलामी आपको बचा नहीं पाएगी. काज़ी लेन्डुप दोरजी की कहानी पढ़िए."
भारत में इसे भड़काने वाले वक्तव्य के तौर पर देखा गया था. ये वक्तव्य ख़ालिदा की भारत की विदेश सचिव सुजाता सिंह से मुलाक़ात के कुछ दिनों बाद ही आया था.
संबंधों में तल्ख़ी

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इमेज कैप्शन, 2013 में जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बांग्लादेश की सरकारी यात्रा पर गए, तो ख़ालिदा ज़िया ने उनसे पहले से तय मुलाक़ात रद्द कर दी थी.
ख़ालिदा के इसी तरह के वक्तव्यों ने भारत में कड़ा रुख़ अपनाने वालों को ये कहने का मौक़ा दे दिया कि बीएनपी का नेतृत्व भारत की भावनाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है.
मार्च 2013 में जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बांग्लादेश की सरकारी यात्रा पर गए, तो ख़ालिदा ज़िया ने बिल्कुल अंतिम समय पर उनसे पहले से तय मुलाक़ात रद्द कर दी.
उन्होंने इसका कारण ढाका की सड़कों पर हो रहा विरोध प्रदर्शन बताया.
संयोग से इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन जमात ने किया था. भारत ने ख़ालिदा के इस क़दम को पसंद नहीं किया.
प्रेस रिपोर्टों के अनुसार ख़ालिदा ने भारतीय नेताओं के साथ बातचीत में बार-बार ये मुद्दा उठाया कि चुनाव से पहले शेख़ हसीना को कार्यवाहक सरकार बना कर अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
इस पर भारतीय नेताओं की प्रतिक्रिया थी कि बांग्लादेश में संविधान संशोधन और अदालती फ़ैसलों के बाद इस मामले में कुछ करने की उसकी भूमिका बहुत सीमित है.
पाकिस्तान के प्रति ख़ालिदा ज़िया के सहानुभूतिपूर्ण रवैए को भारत में कभी पसंद नहीं किया गया.
इसके विपरीत शेख़ हसीना का पाकिस्तान के प्रति हमेशा से विरोधपूर्ण रवैया रहा है.
उनके 15 सालों के शासनकाल में भारत-बांग्लादेश संबंधों में काफ़ी सुधार देखने में आया.
शेख़ हसीना को जिस तरह पद से हटाए जाने के बाद भारत में शरण मिली है, उसे भी बीएनपी ने पसंद नहीं किया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.