कैंसर से जीते लोगों का दर्द:बीमारी को हराने में बहुत कुछ गंवा दिया; कुछ मां नहीं बन सकती, किसी ने आंखों की रोशनी खोई
कैंसर को हराने वाले लोग जीतकर भी हर रोज लड़ रहे हैं। इलाज ने जान तो बचाई, लेकिन कीमोथैरेपी, रेडिएशन ने जिंदगी में कई जख्म छोड़ दिए। ठीक होने के बावजूद कई गंभीर बीमारियों, बांझपन, थायराइड की परेशानियों से जूझ रहे हैं। इस बीमारी ने पीड़ितों को मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक रूप से भी तोड़कर रख दिया। स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के सुपरिटेंडेंट डॉ. संदीप जसूजा कहते हैं- कैंसर सर्वाइवर के दर्द अलग हैं। इनके लिए रोजगार पुनर्वास, मानसिक देखभाल, सामाजिक स्वीकार्यता भी जरूरी है। कैंसर सर्वाइवर्स के लिए सरकार को पॉलिसी बनाने के बारे सोचना चाहिए। आस तो जागी, मगर काश के साथ; काश! जीवन आसान हो... काश! पहले सा अपनापन हो... काश! तंगी ना रहे 5 भाई-बहनों की जिम्मेदारी मुझ पर, ठीक हुआ, लेकिन रोशनी कम हो गई जयपुर में कोचिंग के लिए आए थे धौलपुर के रवीन्द्र। 4 साल पहले गले की गांठ का दर्द बढ़ा तो पता चला ब्लड कैंसर है। मां-बाप ने इलाज में पूरा पैसा लगा दिया। एसएमएस के कैंसर केयर सेंटर पर रवीन्द्र ने बताया- मैं इंटरनेट पर सस्ती मौत के तरीके खोजने लगा था। डॉक्टरों ने हिम्मत बंधाई। बीमारी मिट गई, लेकिन आंखों की रोशनी कम हो गई। टीचर बनकर परिवार की जिम्मेदारी निभाना चाहता हूं। मैं मां नहीं बन पाऊंगी, अब पहले की तरह अपनों का वो प्यार नहीं मिलता बाड़मेर की कविता 28 साल की हैं। स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में रूटीन चैकअप के दौरान मुलाकात हुई। बताती हैं- शादी के 3 साल बाद ही ब्रेस्ट कैंसर का पता चला। जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था कि अचानक ही सबकुछ बदल गया। पति, घर-परिवार ने साथ निभाया, लेकिन लगता है लगातार बीमार रहने के कारण अब वो अपनत्व नहीं मिल पा रहा। कई बार हौसला खो देती हूं, लेकिन फिर उम्मीदभरी नजरों के साथ उठ खड़ी होती हूं। इस बात का दर्द मुझे सालता रहेगा कि काश! मैं भी मां बन पाती। हार्ट से जुड़ी कुछ बीमारियां भी पैदा हो गई हैं। 10 साल बीमारी में गए, पति, भाई और बेटे की मौत... अब औरों का संबल बनी डॉ. ज्योति ए ग्रेड ऑफिसर रहीं। 2015 में ब्रेस्ट कैंसर हुआ। परिवार को लेकर पहले से टूट चुकी थीं। पति, भाई और बेटे की मौत के बाद कैंसर ने 10 साल ले लिए। मुंबई, लखनऊ, जयपुर के हॉस्पिटलों में इलाज चला। ब्रेस्ट रीमूव होने के बाद 200 टांके लगे हैं। सब भुलाकर अब वे कैंसर काउंसलर बन गई हैं। उन महिलाओं में विश्वास भर रही हैं, जो कैंसर से लड़ रही हैं। अब राष्ट्रीय उद्घोषिका हैं।