'क्लैट' क्या है और ये कौन सी नौकरियों का रास्ता खोलता है?
मुश्किल मानी जाने वाले कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट यानी क्लैट देने वाले स्टूडेंट्स की संख्या साल दर साल बढ़ रही है. इसके पीछे वजह क्या है और इसकी तैयारी करने वालों को कौन सी बातें ध्यान रखनी चाहिए?
'क्लैट' क्या है और ये कौन सी नौकरियों का रास्ता खोलता है?

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- Author, प्रियंका झा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
- 10 नवंबर 2025
अगर आपसे कोई क़ानून की पढ़ाई के बारे में पूछे तो मुमकिन है कि आपके मन में भी किसी कोर्टरूम में सफ़ेद कमीज़ और काला कोट पहने किसी वकील की तस्वीर उभर आए.
लेकिन क्या क़ानून पढ़ने वाले सिर्फ़ वक़ालत करते हैं या जज ही बनते हैं?
इसका जवाब है नहीं.
यही वजह है कि भारत की 26 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से क़ानून पढ़ने की इच्छा रखने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है.
पिछले साल करीब 75 हज़ार कैंडिडेट्स ने इन लॉ यूनिवर्सिटी की तीन-साढ़े तीन हज़ार सीटों का रास्ता खोलने वाली परीक्षा यानी कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) में हिस्सा लिया था. इसमें अंडर-ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट, दोनों परीक्षा देने वाले कैंडिडेट शामिल हैं.
हज़ारों नौजवान इस परीक्षा में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे हैं? वजह है इस परीक्षा और पढ़ाई के बाद खुलने वाले रास्ते.
क़ानून की पढ़ाई करने वालों का भविष्य अब सिर्फ़ कोर्टरूम या पेपरवर्क तक सीमित नहीं रह गया है. बल्कि इसने ज्यूडिशरी के अलावा कॉरपोरेट लॉ फ़र्म, कंपनी के बोर्डरूम, पॉलिसी थिंक टैंक, इंटरनेशनल कंपनियों से जुड़ने और यहां तक कि आंत्रप्रन्योर बनने के रास्ते खोले हैं.
आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि ये परीक्षा होती क्या है और इसके दायरे में क्या-क्या आता है.
CLAT मतलब कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट और नेशलन लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) में दाखिला पाने के लिए होने वाला एंट्रेंस टेस्ट है.
ये एनएलयू बेंगलुरु, हैदराबाद, भोपाल, कोलकाता, जोधपुर, रायपुर, गांधीनगर, सिलवासा, लखनऊ, पंजाब, पटना, कोच्चि, ओडिशा, रांची, असम, विशाखापत्तनम, तिरुचिरापल्ली, मुंबई, नागपुर, छत्रपति संभाजीनगर, शिमला, जबलपुर, हरियाणा, अगरतला, प्रयागराज और गोवा जैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में हैं.
कंसोर्शियम ऑफ़ एनएलयूज़ साल में एक बार ये परीक्षा करवाता है. इसमें इंग्लिश, करेंट अफ़ेयर्स, लीगल रीज़निंग, लॉजिकल रीज़निंग और क्वांटिटेटिव टेक्नीक्स जैसे पांच एरिया में स्टूडेंट्स के एप्टीट्यूड को परखा जाता है.
जो नौजवान इसमें सफल होते हैं, उन्हें पांच साल के इंटीग्रेटेड लॉ प्रोग्राम जैसे बीए-एलएलबी, बीबीए-एलएलबी और बीकॉम-एलएलबी में दाखिला मिलता है. हर साल दिसंबर महीने के पहले रविवार को इसकी परीक्षा होती है.
CLAT के ज़रिए पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स के लिए भी दाखिला होता है, जिसकी मियाद एक साल होती है.
कौन दे सकते हैं परीक्षा?
यूजी और पीजी, दोनों ही एग्ज़ाम देने वालों के लिए उम्र की कोई ऊपरी सीमा तय नहीं है.
12वीं में कम से कम 45 फ़ीसदी नंबर लाने वाले हर कैंडिडेट यूजी एग्ज़ाम दे सकते हैं. वहीं, आरक्षित समुदाय के कैंडिडेट्स 40 फ़ीसदी नंबर के साथ ये परीक्षा दे सकते हैं.
यूजी का एग्ज़ाम देने वाले स्टूडेंट्स 12वीं में रहते हुए भी ये परीक्षा दे सकते हैं. यानी जो स्टूडेट अगले साल मई में 12वीं पास करेंगे, वे अगले महीने होने वाली परीक्षा में बैठने के योग्य हैं.
वहीं, पीजी के लिए कैंडिडेट का एलएलबी में कम से कम 50 फ़ीसदी अंक लाना ज़रूरी है. आरक्षित समुदाय को इसमें पांच फ़ीसदी की रियायत दी जाती है.
कौन सी एनएलयू इसका हिस्सा हैं, सिलेबस में क्या-क्या आता है, किस तरह का प्रश्न-पत्र होता है या फिर कुछ अन्य सवालों के जवाब कंसोर्शियम ऑफ़ एनएलयूज़ की वेबसाइट पर मिल जाएंगे.
लेकिन इस इम्तहान को पास करना मुश्किल माना जाता है. क्योंकि सीटें कम हैं और हर साल इसे देने वाले बच्चों की संख्या कहीं ज़्यादा होती है. 26 एनएलयू में अंडरग्रैजुएट कोर्स के लिए 3000-3500 सीटें होती हैं.
एक बात और, एनएलयू दिल्ली हर साल अलग परीक्षा करवाता है, जिसे ऑल इंडिया लॉ एंट्रेंस टेस्ट (AILET) कहा जाता है. ये परीक्षा CLAT के एक सप्ताह बाद होती है. एनएलयू दिल्ली में एलएलबी के लिए 120 सीटें और एलएलएम के लिए 81 सीटें हैं.

कोर्स का स्ट्रक्चर कैसा होता है?
जोधपुर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी टॉप पांच एनएलयू में से एक गिनी जाती है. केशव मालपानी ने क्लैट के ज़रिए ही साल 2015 में यहां दाख़िला लिया था. इसके बाद उन्होंने कॉरपोरेट लॉयर के तौर पर काम किया.
फिर क्लैट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट को पढ़ाना शुरू कर दिया. वो एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं, जहां इस परीक्षा से जुड़ी अहम बातें शेयर करते हैं.
वह इस कोर्स के स्ट्रक्चर पर बताते हैं कि पहले ऐसा होता था कि लोग तीन साल ग्रैजुएशन करते थे और फिर उसके बाद तीन साल लॉ की पढ़ाई करते थे. मगर अब इस कोर्स के ज़रिए ये दोनों काम पांच साल में हो जाते हैं.
इसमें बाद के दो सालों में स्टूडेंट अपना ऑनर्स कोर्स चुनते हैं जैसे कि उन्हें कॉरपोरेट लॉ में स्पेशलाइज़ेशन करना है, कॉन्स्टिट्यूशन लॉ में करना है, ट्रेड लॉ में करना है या फिर क्रिमिनल लॉ में.
केशव ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "क्लैट का सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि किसी भी स्ट्रीम के स्टूडेंट ये परीक्षा दे सकते हैं. मुझे लगता है कि लॉ को एक प्रोफ़ेशन के तौर पर अब भी कमतर आंका जाता है. लोगों को लगता है कि क़ानून पढ़ने के बाद आप वकील ही बनेंगे. लोगों को पता ही नहीं है कि आजकल लॉ में क्या-क्या नया आ गया है."
केशव के मुताबिक, ''आजकल सबसे बड़ा विकल्प आ गया है कॉरपोरेट लॉयर बनने का. यानी वे लोग जो ये सुनिश्चित करते हैं कि जिस कंपनी में वे काम कर रहे हैं, वो क़ानूनों का पूरी तरह पालन करती हो. इनके ज़िम्मे होते हैं कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट्स. साथ ही ये बड़ी-बड़ी डील, जैसे किसी मर्जर या ख़रीद-फ़रोख़्त में भी ये अहम होते हैं. ये बिज़नेस सेटअप में भी मदद करते हैं.''
इसके अलावा भी कई विकल्प हैं, जैसे लिटिगेशन. यानी प्रैक्टिसिंग लॉयर बनना. ज़्यूडिशियल सर्विसेज़ में जाना यानी जज बनना. किसी बड़ी लॉ फ़र्म से जुड़ना.
केशव मालपानी कहते हैं कि जैसे-जैसे वकीलों की डिमांड बढ़ेगी, वैसे ही उन्हें पढ़ाने वालों की संख्या भी बढ़ेगी. ऐसे में अगर कोई चाहे तो फिर वे लेक्चरर या लॉ प्रोफ़ेसर भी बन सकते हैं.
प्लेसमेंट और विकल्प

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केशव मालपानी का कहना है कि जो टॉप पांच-छह एनएलयू हैं, वहां लंदन, दुबई और सिंगापुर की कॉरपोरेट लॉ फ़र्म भी प्लेसमेंट के लिए आती हैं. इसके अलावा बड़े निजी बैंक हों या फिर बड़ी आईटी कंपनियां, ये भी एनएलयू के पासआउट नौजवानों को अपने यहां नौकरी देते हैं और वो भी अच्छे पैकेज पर.
वो एआई का ज़िक्र करते हुए भी लॉ पढ़ने वालों की अहमियत को रेखांकित करते हैं, "एआई के आने से कई नई-नई कंपनियां बन रही हैं. देश-विदेश में कितने स्टार्ट-अप आ रहे हैं. इन सभी कंपनी की नींव रखने के साथ ही वकील की ज़रूरत है. इसके अलावा भारत में स्पेशलाइज़्ड कॉरपोरेट लॉ फ़र्म भी हैं. और इनकी शुरुआती सैलरी ही काफ़ी आकर्षक होती है."
हरियाणा की रहने वाली कनिका जैन ने 12वीं क्लास की पढ़ाई राजस्थान के स्कूल से की थी. उनके परिवार में किसी का भी वकालत या लीगल प्रोफ़ेशन से कोई लेना-देना नहीं रहा था. एक टीचर के ज़रिए उन्हें क्लैट के बारे में पता चला.
यहीं से उन्होंने एक कॉरपोरेट लॉयर बनने का सपना देखा. अब वो नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा में पढ़ाई कर रही हैं.
कनिका का कहना है, "अगर मैं ओडिशा एनएलयू की बात करूं तो यहां कॉरपोरेट लॉ पढ़ने वाले ज़्यादा हैं और उन लोगों की शुरुआती सैलरी ही सालाना 15 लाख से 25 लाख रुपए तक हो सकती है.''
हालांकि, किसे 15 लाख की प्लेसमेंट मिलेगी और किसे 25 लाख की, ये स्टूडेंट्स के पांच साल के प्रदर्शन पर निर्भर करता है. इसमें स्टूडेंट्स के ग्रेड पॉइंट्स और इन पांच सालों में उनकी की गई इंटर्नशिप्स के परफॉर्मेंस पर आकलन होता है.
फ़ीस की बात करें तो ये हर लॉ यूनिवर्सिटी के हिसाब से होती है. जैसे ओडिशा एनएलयू में ये सालाना करीब 1 लाख 40 हज़ार के आसपास है. मगर एनएलयू मेघालय में करीब एक लाख 90 हज़ार. इसके अतिरिक्त फॉर्म भरते समय भी स्टूडेंट्स को 4000 रुपये देने होते हैं.
कैसे करें तैयारी?

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आख़िर में सबसे ज़रूरी सवाल कि वो कौन से स्टेप्स हैं, जिन्हें फॉलो कर कोई स्टूडेंट इस एग्ज़ाम को पास कर सकता है. हमने कनिका से यही पूछा.
उन्होंने बताया, "सबसे पहले तो मैथ्स की प्रैक्टिस करना शुरू कर दीजिए. स्टूडेंट अक्सर ये सोचते हैं कि मैथ्स का सेक्शन बाद में होता है और कई बार स्टूडेंट उसे अटेंप्ट नहीं करते, बल्कि बाकी सेक्शन में अच्छा परफॉर्म करने की कोशिश करते हैं."
वह कहती हैं, "मगर मैथ्स इसलिए ज़रूर अटेम्प्ट करना चाहिए, क्योंकि एक यही सेक्शन है जिसमें आप परफ़ेक्ट स्कोर कर सकते हैं. यानी पेपर क्लियर करने की संभावना भी उतनी ही ज़्यादा है."
कनिका का कहना है कि मॉक टेस्ट देते रहना चाहिए. इसका सीधा सा कारण यही है कि ये असल परीक्षा से कठिन होते हैं. अगर कोई इसे क्लियर कर ले तो फिर जब आप वाकई पेपर दे रहे होंगे, तो आसानी होगी.
बकौल कनिका जनरल नॉलेज पढ़ते समय नोट्स लेते रहने से रिवीज़न आसान होता है.
कनिका के मुताबिक, "एग्जाम देने के लिए किसी को भी पूरे-पूरे दिन पढ़ने की ज़रूरत नहीं है. न तो घबराने की ज़रूरत है. पेपर देते समय दिमाग जितना शांत हो, टाइम मैनेजमेंट उतना आसान होता है. हां, एग्ज़ाम से पहले पूरी नींद लें."
कनिका का कहना है कि क्लैट में नॉलेज से ज़्यादा प्रज़ेंस ऑफ़ माइंड देखा जाता है. चूंकि आप इसकी परीक्षा 12वीं में रहते-रहते देते हैं, तो इसलिए इसकी तैयारी के लिए किसी को कुछ बहुत अलग करने की ज़रूरत नहीं पड़ती.
क्या हिंदी मीडियम वालों को कुछ अलग तैयारी करनी होती है?
केशव मालपानी इसका जवाब हां में देते हैं.
वह कहते हैं, "क्योंकि ये ऐसा एग्ज़ाम है, जिसमें अंग्रेज़ी चाहिए. क़ानून की किताबें, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में या फिर लॉ फर्म, सारे डॉक्यूमेंट इंग्लिश में ही होते है.
हिंदी मीडियम से पढ़ने वालों को तैयारी करते समय अपनी अंग्रेज़ी भी सुधारनी चाहिए.
और बिना कोचिंग के इस परीक्षा को आसानी से पास किया जा सकता है?
केशव कहते हैं, "हां तैयारी तो हो ही सकती है. आज तो इंटरनेट सबसे बड़ा ज़रिया है. जहां आपको काफ़ी कंटेंट मिलता है. लेकिन यही इसका नुकसान भी है क्योंकि इतने बड़े कंटेंट बेस में ये पता लगाना मुश्किल है कि क्या काम का है और क्या नहीं. इसलिए एक सही डायरेक्शन किसी मेंटर से मिलती है, यानी कोई ऐसा जो सही राह दिखा सके."
क्लैट के लिए कई प्राइवेट कोचिंग सेंटर उपलब्ध हैं. यहां अमूमन पूरे कोर्स के लिए 50 हज़ार से एक लाख के बीच फ़ीस होती है. मगर ये फ़ीस इस बात पर भी निर्भर करती है कि कोचिंग सेंटर किस शहर में है, या वो ऑनलाइन है या ऑफ़लाइन.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित