दिसंबर में गर्मी से रबी फसलों की ग्रोथ को नुकसान:किसानों की बढ़ी चिंता, मिट्टी में नमी कम, गेहूं-सरसों की भी बढ़वार थमी
शेखावाटी में दिसंबर का महीना खत्म होने को है, लेकिन कड़ाके की सर्दी और कोहरे का कहीं नामोनिशान नहीं है। दिसंबर में ही मार्च जैसी गर्मी का एहसास हो रहा है, दिन में खिल रही तेज धूप से रबी की फसलों की ग्रोथ रुक गई है। सहायक निदेशक कृषि डॉ. राजेन्द्र लाम्बा ने बताया कि रबी की फसलों के लिए दिन-रात के तापमान में कम अंतर होना चाहिए। अभी पारा 25 डिग्री से ऊपर जा रहा है, जो नुकसानदेह है। ओस और मावठ न होने से गेहूं की बढ़वाकर थम गई है। अगर जनवरी में भी यही हाल रहा, तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। दिसम्बर बीता, सर्दी का इंतजार ही रहा आमतौर पर दिसंबर में कड़ाके की ठंड और कोहरा फसलों को प्राकृतिक नमी देते हैं, जिससे गेहूं और सरसों की फसल अच्छी होती है। दिन-रात के तापमान में आ रहे इस बड़े अंतर की वजह से पौधों का विकास प्रभावित हो रहा है। जिले में करीब 2 लाख 70 हजार हेक्टेयर में गेहूं, सरसों, जौ और चने की बुवाई हुई है, जिसपर अब संकट मंडरा रहा है। रेतीली मिट्टी और गर्मी का दोहरा वार झुंझुनूं की रेतीली मिट्टी में नमी रोकने की क्षमता कम होती है। ऊपर से बढ़ते तापमान ने मिट्टी की रही-सही नमी को भी सोख लिया है। ऐसे में किसानों को बार-बार सिंचाई करनी पड़ रही है। ओस नहीं गिरने से पौधों को मिलने वाली नेचुरल नाइट्रोजन भी नहीं मिल पा रही है। बिजली कटौती ने बढ़ाई मुश्किलें एक तरफ गर्मी से फसलें सूख रही हैं, दूसरी तरफ पर्याप्त बिजली न मिलना किसानों के लिए 'कोढ़ में खाज' जैसा काम कर रहा है। किसानों का कहना है कि थ्री-फेज बिजली मात्र 6 घंटे मिल रही है, जो सिंचाई के लिए काफी नहीं है। सिंचाई का लोड बढ़ने से पानी की खपत बढ़ गई है। किसानों ने मांग की है कि गर्मी को देखते हुए बिजली सप्लाई का समय बढ़ाया जाए।
शेखावाटी में इस बार मौसम के बदले मिजाज ने अन्नदाता के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। दिसंबर का महीना खत्म होने को है, लेकिन कड़ाके की सर्दी और कोहरे का कहीं नामोनिशान नहीं है। दिन में खिल रही तेज धूप अब फसलों के लिए 'आफत' बनने लगी है। हालात ये हैं कि दिसंबर में ही मार्च जैसी गर्मी का अहसास हो रहा है, जिससे रबी की फसलों की ग्रोथ रुक गई है। सहायक निदेशक कृषि डॉ. राजेन्द्र लाम्बा ने बताया कि रबी की फसलों के लिए दिन-रात के तापमान में कम अंतर होना चाहिए। अभी पारा 25 डिग्री से ऊपर जा रहा है, जो नुकसानदेह है। ओस और मावठ न होने से गेहूं की बढ़वार थम गई है। अगर जनवरी में भी यही हाल रहा, तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। दिसम्बर बीता, सर्दी का इंतजार ही रहा आमतौर पर दिसंबर में कड़ाके की ठंड और कोहरा फसलों को प्राकृतिक नमी देते हैं, जिससे गेहूं और सरसों की फसल अच्छी होती है। दिन और रात के तापमान में आ रहे इस बड़े अंतर की वजह से पौधों का विकास प्रभावित हो रहा है। जिले में करीब 2 लाख 70 हजार हेक्टेयर में गेहूं, सरसों, जौ और चने की बुवाई हुई है, जिस पर अब संकट मंडरा रहा है। रेतीली मिट्टी और गर्मी का दोहरा वार झुंझुनूं की रेतीली मिट्टी में नमी रोकने की क्षमता कम होती है। ऊपर से बढ़ते तापमान ने मिट्टी की रही-सही नमी को भी सोख लिया है। ऐसे में किसानों को बार-बार सिंचाई करनी पड़ रही है। ओस नहीं गिरने से पौधों को मिलने वाली नेचुरल नाइट्रोजन भी नहीं मिल पा रही है। बिजली कटौती ने बढ़ाई मुश्किलें एक तरफ गर्मी से फसलें सूख रही हैं, दूसरी तरफ पर्याप्त बिजली न मिलना किसानों के लिए 'कोढ़ में खाज' जैसा काम कर रहा है। किसानों का कहना है कि थ्री-फेज बिजली मात्र 6 घंटे मिल रही है, जो सिंचाई के लिए काफी नहीं है। सिंचाई का लोड बढ़ने से पानी की खपत बढ़ गई है। किसानों ने मांग की है कि गर्मी को देखते हुए बिजली सप्लाई का समय बढ़ाया जाए।