ख़ालिदा ज़िया: 'शर्मीली हाउसवाइफ़' जो बनी थीं बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री
SOURCE:BBC Hindi
ख़ालिदा ज़िया को 'शर्मीली गृहिणी' बताया जाता था जो अपने दो बेटों के प्रति समर्पित थीं. लेकिन 1981 में अपने पति की हत्या के बाद, उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का नेतृत्व किया और दो बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं.
ख़ालिदा ज़िया: 'शर्मीली हाउसवाइफ़' जो बनी थीं बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री
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इमेज कैप्शन, ख़ालिदा ज़िया दो बार बांग्लादेश की पीएम रहीं.
3 घंटे पहले
बांग्लादेश की पूर्व और पहली महिला प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया का 80 साल की उम्र में मंगलवार सुबह छह बजे निधन हो गया.
ख़ालिदा ज़िया के पति ज़ियाउर रहमान बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी व्यक्ति थे. साल 1977 में राष्ट्रपति बने थे.
उस समय ख़ालिदा ज़िया को 'शर्मीली गृहिणी' बताया जाता था जो अपने दो बेटों के प्रति समर्पित थीं.
लेकिन, 1981 में अपने पति की हत्या के बाद, उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का नेतृत्व किया और दो बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं.
वह पहली बार 1990 के दशक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं.
बाद में ख़ालिदा ज़िया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए और उन्होंने कई साल जेल में बिताए.
लेकिन देश में 2024 के विद्रोह के बाद ये सारे आरोप हटा दिए गए. इस विद्रोह ने उनकी प्रतिद्वंद्वी शेख़ हसीना को सत्ता से बाहर कर दिया गया था.
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इमेज कैप्शन, 1980 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति ज़ियाउर रहमान ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के साथ
बेगम ख़ालिदा ज़िया का जन्म 1945 में पश्चिम बंगाल में हुआ था.
वह भारत के विभाजन के बाद अपने परिवार के साथ वर्तमान बांग्लादेश चली गईं. 15 साल की उम्र में उन्होंने ज़ियाउर रहमान से विवाह किया. ज़ियाउर रहमान उस समय एक युवा फौजी अफ़सर थे.
साल 1971 में, उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध विद्रोह में भाग लिया और बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की.
ज़ियाउर रहमान 1977 में बांग्लादेश की सेना के प्रमुख थे. उस साल उन्होंने ख़ुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया.
उन्होंने राजनीतिक दलों और स्वतंत्र मीडिया को फिर से स्थापित किया. बाद में उन्हें जनता का समर्थन भी मिला.
अपने कार्यकाल में उन्हें 20 से ज़्यादा बार सैन्य विद्रोह का सामना करना पड़ा. हर बार ज़ियाउर रहमान ने विद्रोहियों से क्रूरता से निपटा. इस दौरान विद्रोही सैनिकों को सामूहिक रूप से मौत की सज़ा देने की ख़बरें भी आईं.
साल 1981 में चटगांव में सेना अधिकारियों के एक समूह ने उनकी हत्या कर दी.
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इमेज कैप्शन, ख़ालिदा ज़िया को 1987 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था
अपने पति की मौत तक ख़ालिदा ज़िया ने सार्वजनिक जीवन में कोई रुचि नहीं दिखाई थी. लेकिन मौत के बाद ख़ालिदा ज़िया बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सदस्य और उपाध्यक्ष बन गईं.
1982 में बांग्लादेश में नौ साल की सैन्य तानाशाही शुरू हुई. लेकिन ख़ालिदा ज़िया ने लोकतंत्र की हिमायत में अभियान चलाया.
इस सालों में सेना ने कभी-कभार चुनाव कराए, लेकिन ख़ालिदा ज़िया ने अपनी पार्टी को इन चुनावों में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं दी.
कुछ ही समय बाद, उन्हें नज़रबंद कर दिया गया.
फिर भी, उन्होंने बड़े पैमाने पर रैलियों को बढ़ावा देना जारी रखा. इस दबाव के सामने सेना को झुकना पड़ा.
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इमेज कैप्शन, ख़ालिदा ज़िया को फरवरी 1991 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में चुनाव प्रचार करते हुए
1991 में हुए चुनावों में ख़ालिदा ज़िया ने हिस्सा लिया और उनकी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी.
इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई.
बांग्लादेश के पुराने राष्ट्रपति पद की अधिकांश शक्तियों को ख़ालिदा ज़िया ने अपने हाथ में ले लिया .
वह अब बांग्लादेश की पहली और किसी मुस्लिम देश का नेतृत्व करने वाली दूसरी महिला थीं.
सत्ता में आने के बाद ख़ालिदा ज़िया ने प्राथमिक शिक्षा सभी के लिए निःशुल्क और अनिवार्य कर दी.
लेकिन, पांच साल बाद, वह शेख़ हसीना की अवामी लीग से चुनाव हार गईं.
साल 2001 में, ख़ालिदा ज़िया ने अपना बदला लिया और इस्लामी पार्टियों के एक समूह के साथ गठबंधन कर लिया.
साथ मिलकर, उन्होंने संसद में लगभग दो-तिहाई सीटें जीत लीं.
अपने दूसरे कार्यकाल में, उन्होंने महिला सांसदों के लिए विधानमंडल में 45 सीटें आरक्षित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन पेश किया.
उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए अभियान चलाया. उस वक़्त बांग्लादेश में 70% महिलाएं निरक्षर थीं.
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इमेज कैप्शन, 1991 के चुनाव में ख़ालिदा ज़िया का एक पोस्टर
अक्तूबर 2006 में, ख़ालिदा ज़िया ने निर्धारित आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी.
लेकिन दंगों की लहर के कारण सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा. नए लोकतांत्रिक चुनावों का वादा किया गया, लेकिन चुनाव में देरी हो गई.
अंतरिम सरकार ने अधिकांश राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया और उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार पर कार्रवाई शुरू कर दी.
एक साल बाद ख़ालिदा ज़िया को जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
इससे पहले उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी शेख़ हसीना को भी नज़रबंद कर दिया गया था. शेख़ हसीना अवामी पार्टी की नेता और बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति की बेटी हैं.
इसके बाद दोनों महिलाएं अदालती मामलों में फँस गईं.
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इमेज कैप्शन, अपने पहले कार्यकाल में साल 1995 में एक स्पीच के दौरान ख़ालिदा ज़िया.
इसके बाद ख़ालिदा ज़िया को नज़रबंद कर दिया गया.
2008 में उन पर लगे प्रतिबंध हटा लिए गए और उन्होंने सैन्य प्रायोजित चुनावों में भाग लिया. इन चुनावों में शेख़ हसीना की जीत हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.
2011 में भ्रष्टाचार निरोधक आयोग ने ख़ालिदा ज़िया के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था, जिसमें उन पर अपने दिवंगत पति के नाम पर एक चैरिटी के लिए भूमि ख़रीदने में अघोषित आय का उपयोग करने का आरोप लगाया गया था.
इसके बाद उन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया. इस दौरान उन्हें अपनी पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए काफ़ी संघर्ष का सामना करना पड़ा.
2014 में हुए चुनावों का उनके समर्थकों ने बहिष्कार किया. उनका तर्क था कि मतदान में अवामी लीग धांधली करने वाली है.
इसके बाद हुए चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रहे. बांग्लादेश में बीएनपी कार्यकर्ताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं और संसद की आधी सीटों पर सांसद निर्विरोध चुने गए.
एक साल बाद बहिष्कार की वर्षगांठ पर, ख़ालिदा ज़िया ने देश में नए चुनावों की मांग की और सरकार के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करने की योजना बनाई.
जवाब में, बांग्लादेशी सुरक्षा बलों ने राजधानी ढाका स्थित उनके पार्टी कार्यालय के दरवाज़े बंद कर उन्हें बाहर निकलने से रोक दिया. साथ ही शहर में सभी विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया.
ख़ालिदा ज़िया ने उस समय कहा था कि सरकार अपने लोगों से "अलग" हो गई है और उसकी कारगुजारियों ने सारे देश को क़ैद कर लिया है
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इमेज कैप्शन, ख़ालिदा ज़िया साल 2015 में अपने समर्थकों को संबोधित करती हुईं
ख़ालिदा ज़िया के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप उनके दूसरे कार्यकाल से जुड़े हैं.
तब उन्होंने 2003 में कार्गो टर्मिनलों से संबंधित ठेके देने के लिए कथित तौर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था.
उनके छोटे बेटे अराफात रहमान कोको पर उन सौदों को मंजूरी देने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया गया था.
2018 में, ख़ालिदा ज़िया को प्रधानमंत्री रहते हुए बनाई गई ट्रस्ट के लिए ग़बन का दोषी पाए जाने पर पांच साल के लिए जेल में डाल दिया गया था.
उनकी सज़ा की अवधि के कारण उन्हें सार्वजनिक पद लेने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया.
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इमेज कैप्शन, साल 2018 में हज़ारों बीएनपी समर्थकों ने ख़ालिदा ज़िया की रिहाई के लिए ढाक में प्रदर्शन किया
अपना बचाव करते हुए उन्होंने किसी भी ग़लत काम से इनकार किया और कहा कि आरोप राजनीति से प्रेरित हैं.
एक वर्ष बाद, 73 वर्षीय ख़ालिदा ज़िया को गंभीर गठिया और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया.
आख़िरकार उन्हें स्वास्थ्य कारणों से जेल से रिहा कर दिया गया और घर पर ही रहने को कहा गया.
साल 2024 में, शेख हसीना की सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन जिसके बाद उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी.
हसीना भारत चली आईं और उनकी जगह आई अंतरिम सरकार ने ख़ालिदा ज़िया की रिहाई और उनके बैंक खातों पर लगी रोक हटाने का आदेश दिया.
अब तक वह कई जीवन-घातक बीमारियों से पीड़ित हो चुकी थीं. इनमें लीवर सिरोसिस जैसी बीमारियां भी शामिल हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.