गिग वर्कर्स के विरोध की कमान संभालने वाले शेख़ सलाउद्दीन को जानिए
तेलंगाना गिग एंड प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स यूनियन ने 25 और 31 दिसंबर को गिग वर्कर्स की मांगों को लेकर फ़्लैश स्ट्राइक का आह्वान किया है. इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व यूनियन के प्रमुख शेख़ सलाउद्दीन कर रहे हैं.
गिग वर्कर्स के विरोध की कमान संभालने वाले शेख़ सलाउद्दीन को जानिए

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इमेज कैप्शन, गिग वर्कर्स की समस्याओं को लेकर 31 दिसंबर को देशभर में फ्लैश स्ट्राइक की जा रही है
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- Author, सौरभ यादव
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
- 6 घंटे पहले
नए साल के जश्न से ठीक पहले 31 दिसंबर को देश भर में कई प्रमुख डिलीवरी ऐप से जुड़े गिग वर्कर्स हड़ताल कर रहे हैं.
इससे माना जा रहा है कि लोगों के नए साल के जश्न पर असर पड़ेगा क्योंकि आम दिनों की तुलना में 31 दिसंबर-एक जनवरी को लोग कहीं ज़्यादा ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं.
इस हड़ताल का आह्वान तेलंगाना गिग एंड प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स यूनियन ने किया है. इससे पहले यह यूनियन 25 दिसंबर को भी हड़ताल कर चुकी है.
25 दिसंबर को देशभर में गिग वर्कर्स ने 10 मिनट डिलीवरी के प्रावधान और कम होती कमाई को लेकर प्रदर्शन किया था. वर्कर्स इन्हीं मांगों को लेकर एक बार फिर 31 दिसंबर को भी प्रदर्शन कर रहे हैं.
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व यूनियन के प्रमुख शेख़ सलाउद्दीन कर रहे हैं.
सलाउद्दीन का कहना है कि देशभर में करोड़ों गिग वर्कर्स काम कर रहे हैं. लेकिन इनमें से बड़ी आबादी को न ही सोशल सिक्योरिटी प्राप्त है और न ही उन्हें कंपनियों की ओर से सही भुगतान किया जा रहा है.
गिग अर्थव्यवस्था में युवाओं (16 से 23 वर्ष आयु वर्ग) की भागीदारी 2019 से 2022 के बीच आठ गुना बढ़ी है.
गिग वर्कर्स क्यों कर रहे हैं स्ट्राइक और क्या हैं मांगे

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इमेज कैप्शन, कुछ गिग वर्कर्स का कहना है कि कंपनियों की ओर से उन्हें ठीक भुगतान नहीं किया जाता है
तेलंगाना गिग एंड प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष शेख़ सलाउद्दीन कहते हैं, "डिलीवरी करने वाले वर्कर्स की फीस को दिन ब दिन कम किया जा रहा है. प्रति ऑर्डर पहले 80 रुपये फिर 60 रुपये और अब 10 रुपये 20 रुपये, 15 रुपये तक दे रहे हैं."
सलाउद्दीन कहते हैं एग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म्स को डिलीवरी के लिए कम से कम 35-40 रुपये गिग वर्कर्स को देने चाहिए. ये कंपनियां वर्कर्स के खू़न पसीने से मुनाफ़ा कमा रही हैं.
शेख सलाउद्दीन कहते हैं हमारी मुख्य रूप से पांच मांगे हैं-
- पुराना पेआउट दिया जाए, जो 80 रुपये और 60 रुपये था.
- दस मिनट के अंदर डिलीवरी का प्रावधान एकदम बंद होना चाहिए.
- ऐप से एल्गोरिदम कंट्रोल हटना चाहिए.
- वर्कर्स की आईडी को ब्लॉक करना बंद होना चाहिए.
- गिग वर्कर्स की डिगनिटी और सोशल सिक्योरिटी होनी चाहिए.
25 दिसंबर की स्ट्राइक के बाद 28 दिसंबर को टीजीपीडब्ल्यूयू की ओर से जारी की गई प्रेस रिलीज कहा गया है, "पूरे भारत में करीब 40,000 डिलीवरी वर्कर हड़ताल में शामिल हुए, जिससे कई शहरों में 50-60% डिलीवरी में रुकावट आई. वर्करों की मांगों पर ध्यान देने के बजाय, कंपनियों ने थर्ड-पार्टी डिलीवरी एजेंसियों का इस्तेमाल करके, एक्स्ट्रा इंसेंटिव रिश्वत देकर और इनएक्टिव आईडी को फिर से एक्टिव करके हड़ताल तोड़ने की कोशिश की."
इसमें सरकार से अपील की गई कि, "सरकार को तुरंत दखल देना चाहिए. सरकार प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों को रेगुलेट करें, मज़दूरों के उत्पीड़न को रोकें और सही मज़दूरी, सुरक्षा और सोशल प्रोटेक्शन पक्का करे. गिग इकॉनमी मज़दूरों के टूटे हुए शरीर और खामोश आवाज़ों पर नहीं बनाई जा सकती."
शेख़ सलाउद्दीन कहते हैं कि हम स्ट्राइक करने से पहले वर्कर्स से वोट कराते हैं अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा वर्कर्स ने हां कहा तभी स्ट्राइक का निर्णय लिया जाता है.
कौन हैं शेख़ सलाउद्दीन?

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इमेज कैप्शन, शेख़ सलाउद्दीन लंबे समय से ऐप बेस्ड कंपनियों के गिग वर्कर्स के लिए आवाज उठाते रहे हैं.
शेख़ सलाउद्दीन का जन्म साल 1985 हैदराबाद के अंबरपेट में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई हैदराबाद में हुई है.
सलाउद्दीन पेशे से ड्राइवर हैं और अभी टैक्सी चालने का काम करते हैं.
उन्होंने हैदराबाद सिटी कॉलेज से कॉमर्स में ग्रैजुएशन किया है. शेख़ सलाउद्दीन 2012 से ऐप-बेस्ड राइड-हेलिंग/शेयरिंग कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं.
सलाउद्दीन ने साल 2014 में आउटसोर्स, कॉन्ट्रैक्ट और दूसरे प्राइवेट ड्राइवरों के हितों की रक्षा के लिए तेलंगाना फोर व्हीलर ड्राइवर्स एसोसिएशन की स्थापना की.
साल 2016 में उन्होंने तेलंगाना स्टेट टैक्सी एंड ड्राइवर्स जॉइंट एक्शन कमिटी बनाई, जिसके तहत राज्य के 20 ड्राइवर एसोसिएशन और यूनियन एक साथ एक संगठन के तहत आए.
साल 2019 में शेख़ सलाउद्दीन को 'इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स' (IFAT) का नया नेशनल जनरल सेक्रेटरी चुना गया.
यह एक रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन है, जो भारत के 15 शहरों के 20 मज़दूर संगठनों और यूनियनों का गठबंधन है, जिसके कुल मिलाकर लगभग 35,000 सदस्य हैं.
साल 2022 में उन्होंने तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन (TGPWU) नाम का एक नया संगठन शुरू किया, जिसके ज़रिए उन्हें उम्मीद है कि वे राइड-हेलिंग/शेयरिंग और डिलीवरी वर्कर्स से आगे बढ़कर तेलंगाना राज्य के सभी गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स तक पहुंच पाएंगे.
TGPWU का लक्ष्य ओला, उबर, स्विगी, जोमाटो, ब्लिंक इट, फ्लिपकार्ट, बिग बास्केट, अमेज़न,डंजो, शैडोफैक्स, अरबन कंपनी आदि के साथ काम करने वाले सभी गिग वर्कर्स को एक साथ लाना है.
तेलंगाना गिग एंड प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स यूनियन क्या है?

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इमेज कैप्शन, कोविड-19 महामारी के दौरान टीजीपीडब्ल्यूयू संगठन बनाया गया था.
कोविड-19 महामारी के दौरान साल 2021 में बनाया गया टीजीपीडब्ल्यूयू, गिग वर्कर्स के हितों की बात करता है और उन्हें एक साथ लाने का भी लक्ष्य रखता है ताकि वे अलग-अलग डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ बेहतर रोज़गार की शर्तों पर बातचीत कर सकें, और गलत या शोषण वाली हरकतों के खिलाफ कैंपेन को सपोर्ट कर सकें.
इसमें मोबिलिटी प्लेटफ़ॉर्म (उबर, ओला, रैपीडो) से जुड़े ऐप-आधारित टैक्सी चालक और बाइक राइडर्स, लॉजिस्टिक्स और ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म (डंजों, देलीवेरी, शैडोफैक्स, अमेज़न,फ़्लिपकार्ट) के डिलीवरी एजेंट, फ़ूड डिलीवरी प्लेटफ़ॉर्म (जोमाटो, स्विगी) के डिलीवरी कर्मी, तथा गिग मार्केटप्लेस प्लेटफ़ॉर्म (अरबन कंपनी, हाउसजॉय) से जुड़े फ़्रीलांस और पार्ट-टाइम कामगार शामिल हैं.
यूनियन का कहना है कि बीते वर्षों में प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों द्वारा काम के बदले दी जाने वाली राशि में कटौती हुई है, जबकि काम का दबाव, समय और ख़र्च लगातार बढ़े हैं.
गिग वर्कर्स की समस्याएं क्या हैं?
भारत में गिग वर्कर्स की समस्याओं के लिए सलाउद्दीन 'PAIGAM' (पीपल्स एसोसिएशन इन ग्रास रूट्स एक्शन एंड मूवमेंट्स) के एक सर्वे (प्रीजनर्स ऑफ़ व्हील) का हवाला देते हैं.
पैगाम के सर्वे को इंडियन फेडरेशन ऑफ़ एप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफ़एटी) और यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिल्वेनिया ने मिलकर किया है.
पैगाम सर्वे के अनुसार:
- यह सर्वे 10000 हज़ार लोगों पर किया गया जिसमें पांज हजार ड्राइवर और पांच हजार वो लोग शामिल हैं जो डिलीवरी ऐप्स के लिए काम करते हैं. यह सर्वे भारत के कई बड़े शहरों में किया गया.
- 43% गिग वर्कर्स खर्च निकालने के बाद एक दिन में 500 रुपये से कम कमाते हैं.
- 40.7 प्रतिशत गिग वर्कर्स का कहना है कि उन्होंने सप्ताह में एक दिन भी छुट्टी नहीं लेते हैं.
- 72% गिग वर्कर्स ने बताया कि अपनी मौजूदा कमाई से वे अपने घर के मासिक बुनियादी ख़र्च पूरे नहीं कर पा रहे हैं
- वर्कर अपनी राइड वैल्यू का लगभग 30-40% हिस्सा प्लेटफॉर्म फीस और कटौतियों में खो देते हैं.
डिलीवरी का काम करने वाले वर्कर्स का क्या कहना है?

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गिग वर्कर्स की फ्लैश स्ट्राइक और उनकी समस्याओं को जानने के लिए बीबीसी न्यूज़ हिन्दी ने 31 दिसंबर की सुबह कुछ गिग वर्कर्स से बातचीत की.
ब्लिंकिट के लिए डिलीवरी का काम करने वाले मिस्टर एक्स (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "दस मिनट में डिलीवरी का प्रावधान हमारे लिए एक बड़ी समस्या है. कभी ट्रैफिक की वजह से या लोकेशन न मिलने के कारण देरी हो जाती है. ऐसे में अगर कस्टमर शिकायत कर देता है तो उसका नुकसान हमें अपनी जेब से भरना पड़ता है."
ब्लिंकिट के लिए काम करने वाले मिस्टर ज़ेड (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि कंपनियाँ उन्हें बहुत कम पैसे देती हैं. उनके मुताबिक अगर वे एक ऑर्डर लेकर 10 किलोमीटर जाते हैं तो उन्हें 9 रुपये प्रति किलोमीटर मिलते हैं, लेकिन वही 10 किलोमीटर वापस आने के लिए सिर्फ 6 रुपये दिए जाते हैं.
वे यह भी कहते हैं कि अगर कोई वर्कर इस बात की आवाज़ उठाता है कि उसे कम पैसे मिल रहे हैं, तो किसी न किसी बहाने उसकी आईडी बंद कर दी जाती है.
जेप्टो के लिए डिलीवरी का काम करने वाले कृष्णा कहते हैं कि दस मिनट की डिलीवरी में कई खतरे होते हैं और सड़क दुर्घटना की संभावना बनी रहती है. जेप्टो एक डिलीवरी के लिए प्रति किलोमीटर 14 रुपये देता है, लेकिन यह भुगतान सिर्फ स्टोर से ग्राहक की लोकेशन तक के लिए होता है. वापस लौटने के लिए अलग से कोई भुगतान नहीं किया जाताय.
कृष्णा बताते हैं कि अगर वे कोई ऑर्डर लेकर जाते हैं और उसमें कोई सामान कम निकलता है, तो कस्टमर पैसे काट लेता है, जबकि स्टोर पर उन्हें पूरे पैसे देने पड़ते हैं. वे यह भी कहते हैं कि अगर कोई कस्टमर ऑर्डर लेने से मना कर देता है तो ऑर्डर कैंसल होने में 30 मिनट तक लग जाते हैं. इस दौरान उन्हें खाली बैठना पड़ता है.

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इमेज कैप्शन, भारत में साल 2030 तक 2.35 करोड़ गिग वर्कर्स के होने का अनुमान है
एक गिग वर्कर ने 31 दिसंबर और नए साल को देखते हुए ब्लिंकिट की ओर से वर्कर्स को दिए जा रहे ऑफर्स भी दिखाए. इन ऑफर्स के मुताबिक अगर कोई वर्कर दिन भर में 25 ऑर्डर पूरे करता है तो उसे 645 रुपये इंसेंटिव मिलेगा है, 50 ऑर्डर पूरे करने पर 2160 रुपये और 60 ऑर्डर पूरे करने पर 4585 रुपये इंसेंटिव के रूप में दिया जाएगा.
इन ऑफर्स पर वर्कर्स का कहना है कि एक दिन में 25, 50 या 60 डिलीवरी पूरी करना आसान नहीं है. उनका कहना है कि अगर वे इन लक्ष्यों को पूरा करते हैं, तो उन्हें 15-16 घंटे तक काम करना पड़ता है. वहीं अगर वे दिन में 8 घंटे काम करते हैं तो उन्हें औसतन सिर्फ 600-700 रुपये ही मिल पाते हैं.
जेप्टो और ब्लिंकिट दोनों कंपनियों में गिग वर्कर्स के लिए सड़क दुर्घटना की स्थिति में 1 लाख रुपये का बीमा और मृत्यु होने पर 10 लाख रुपये के बीमा का प्रावधान है.
क्या कह रही हैं कंपनियां

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इमेज कैप्शन, अभी तक गिग वर्कर्स की फ्लैश स्ट्राइक पर कंपनियों ने हमें कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है
TGPWU ने बीबीसी को जोमाटो की ओर से डिलीवरी करने वाले वर्कर्स को भेजे गए एक लेटर को साझा किया.
31 दिसंबर की फ्लैश स्ट्राइक को देखते हुए जोमाटो की ओर वर्कर्स को भेजे गए लेटर में लिखा है, "जोमाटो ने अहमदाबाद में प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि 31 दिसंबर को किसी भी डिलीवरी पार्टनर को डिलीवरी करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी."
"तो आप बेफिक्र होकर डिलीवरी करें और 3000 तक कमाएं. हम स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर आपकी सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम उठा रहे हैं. जोमाटो के टीम लिड्स और क्विक रिसपॉन्स टीम आपकी मदद के लिए दिन रात तैयार है."
इस मामले का कंपनियों का रुख जानने के लिए हमनें ई कॉमर्स कंपनी जेप्टो और ब्लिंकिट को मेल किया. ब्लिंकिट का कहना है कि अभी तक उनके पास इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं है.
जेप्टो ने अभी तक हमारे मेल का कोई उत्तर नहीं दिया है.
बीबीसी मराठी के नीलेश धोत्रे ने हड़ताल की स्थिति जानने की कोशिश की तो पता चला कि कई डिलिवरी ऐप कंपनियां गिग वर्कर्स को 31 दिसंबर को कहीं बेहतर इंसेंटिव दे रही है. लेकिन ये इंसेंटिव केवल आज के लिए है. इसका हड़ताल पर असर पड़ा है. एक डिलीवरी बॉय से हड़ताल में हिस्सा नहीं लेने के सवाल पर बताया, "मैं आज इसलिए आया क्योंकि आज कमाई पहले से ज्यादा होने वाली है."
डिलीवरी बॉय ने दावा किया, "30 दिसंबर तक 15 डिलीवरी करने पर 400 रुपये की कमाई होती थी और 200 रुपये इंसेंटिव मिलता था. लेकिन आज 15 डिलीवरी के बाद उसके अलावा अलग से 150 रुपये इंसेंटिव मिल रहा है."
इसका मतलब हुआ कि अगर डिलीवरी बॉय को पहले 15 ऑर्डर करने पर 600 रुपये कमाई हो रही थी, तो आज वो कमाई बढ़कर 750 रुपये हो गई है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.