उन्नाव बलात्कार केस: कुलदीप सिंह सेंगर को ज़मानत आख़िर किस आधार पर मिली?
SOURCE:BBC Hindi
दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार 23 दिसंबर को पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें ज़मानत दे दी. एक नाबालिग़ लड़की के साथ बलात्कार के मामले में साल 2019 में कुलदीप सेंगर को उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी.
उन्नाव बलात्कार केस: कुलदीप सिंह सेंगर को ज़मानत आख़िर किस आधार पर मिली?
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इमेज कैप्शन, ज़मानत के बावजूद कुलदीप सेंगर अभी जेल में ही रहेंगे (फ़ाइल फ़ोटो)
Author, उमंग पोद्दार
पदनाम, बीबीसी संवाददाता
25 दिसंबर 2025
दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार 23 दिसंबर को पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें ज़मानत दे दी.
एक नाबालिग़ लड़की के साथ बलात्कार के मामले में साल 2019 में कुलदीप सेंगर को उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी. उत्तर प्रदेश के उन्नाव में साल 2017 की यह घटना देश भर में सुर्खियों में रही थी.
मंगलवार के इस फ़ैसले के बाद यह मामला फिर एक बार चर्चा में आ गया है.
बलात्कार के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वाली वह लड़की, उनकी माँ, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ विपक्ष के नेताओं ने इस फ़ैसले का विरोध किया है.
सर्वाइवर के परिवार ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है.
हालाँकि, अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे. उन्हें इस बलात्कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है.
साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी.
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इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ भी कुलदीप सेंगर ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की है. यह अभी लंबित है.
हालांकि, ग़ौर करने वाली बात है कि इस मामले में भी कुलदीप सेंगर ने सज़ा को निलंबित करने की अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में डाली थी. 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने ये अर्जी ख़ारिज कर दी थी.
आइए जानते हैं कि किस मामले में सज़ा कब निलंबित की जाती है और किन आधारों पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को ज़मानत दी.
सज़ा निलंबित कब की जाती है?
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इमेज कैप्शन, रेप सर्वाइवर के पिता की हत्या के मामले में सज़ा निलंबन को लेकर कुलदीप सेंगर की ओर से साल 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट में दायर अर्जी ख़ारिज कर दी गई थी
सज़ा को निलंबित करना ज़मानत की तरह ही होता है. जब कोई अदालत एक व्यक्ति को सज़ा सुनाती है तो उस व्यक्ति के पास उसके ख़िलाफ़ अपील करने का अधिकार होता है.
अपील के दौरान, हाई कोर्ट के पास यह शक्ति होती है कि वह सज़ा को निलंबित कर अभियुक्त को ज़मानत दे.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फ़ैसलों में कहा है कि अगर किसी को उम्र क़ैद की सज़ा भी मिली है, तब भी उसे ज़मानत मिलने का अधिकार होना चाहिए.
साल 2023 के एक फ़ैसले में कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में यह देखने की ज़रूरत है कि निचली अदालत में जो सज़ा दी गई है, क्या उसके ख़िलाफ़ अपील करने पर कहीं अभियुक्त के बरी होने की उम्मीद तो नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट को अगर प्रथम दृष्ट्या फ़ैसले में कोई बड़ी ग़लती दिखे तो दोषी को ज़मानत दी जानी चाहिए.
ऐसे में किसी भी दोषी को अपील की सुनवाई ख़त्म होने तक जेल में नहीं रखना चाहिए क्योंकि पूरी सुनवाई ख़त्म होने में लंबा वक़्त लग सकता है.
हालाँकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि छोटी ग़लतियों के कारण सज़ा को निलंबित नहीं किया जाना चाहिए.
उन्नाव बलात्कार केस क्या है?
इस मामले में दिसंबर 2019 में कुलदीप सेंगर को भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के बलात्कार के मामले के प्रावधान और बच्चे-बच्चियों के यौन शोषण से सुरक्षा के क़ानून 'पॉक्सो' में 'एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट', यानी गंभीर यौन हिंसा के प्रावधान के तहत उम्र क़ैद की सज़ा दी गई थी.
जब कोई 'पब्लिक सर्वेंट' यानी लोक सेवक बलात्कार का अपराध करता है, तब आईपीसी की धारा 376(2)(बी) और पॉक्सो की धारा 5(सी) के प्रावधानों के तहत सज़ा दी जाती है. इन्हीं धाराओं के तहत कुलदीप सेंगर को भी सज़ा दी गई.
अगर कोई लोक सेवक बलात्कार के लिए दोषी पाया जाता है तो उसके लिए किसी आम नागरिक के दोषी पाए जाने के मुक़ाबले ज़्यादा गंभीर सज़ा निर्धारित की हुई है.
साल 2017 में जब उन्नाव बलात्कार की घटना हुई तो आईपीसी और 'पॉक्सो' के तहत किसी लोक सेवक को बलात्कार के लिए कम से कम दस साल की सज़ा निर्धारित थी. इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता था.
इसकी तुलना में किसी आम नागरिक द्वारा बलात्कार किए जाने पर उसे कम से कम सात साल की सज़ा निर्धारित थी.
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कुलदीप सेंगर लोक सेवक हैं या नहीं?
यह फ़र्क़ समझना ज़रूरी है क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट के सामने यही सवाल था. क्या कुलदीप सेंगर को लोक सेवक माना जा सकता है?
उनके वकीलों का कहना था कि ट्रायल कोर्ट ने उन्हें लोक सेवक मानने में ग़लती कर दी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि आईपीसी के तहत किसी विधायक को लोक सेवक नहीं माना जाएगा.
ट्रायल कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक दूसरे फ़ैसले का सहारा लेते हुए कहा था कि कुलदीप सेंगर को लोक सेवक माना जा सकता है.
यह साल 1997 का एक फ़ैसला था. इसमें 'प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट' के तहत किसी विधायक को लोक सेवक माना गया था.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कुलदीप सेंगर के वकीलों के तर्क से सहमति जताई. कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो क़ानून पर 'प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट' के तहत दी गई लोक सेवक की परिभाषा लागू नहीं होगी.
हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि यह केवल प्रथम दृष्टया एक टिप्पणी है. उन्होंने कहा कि वे अभी यह नहीं देख रहे हैं कि अगर कुलदीप सेंगर को लोक सेवक न माना जाए तो बलात्कार के मामले में उन्हें कितनी सज़ा मिलेगी.
उन्होंने कहा कि यह सवाल अपील पूरी तरह तय करने के वक़्त देखा जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि 'पॉक्सो' के तहत बलात्कार के लिए न्यूनतम सात साल की सज़ा तय है और कुलदीप सेंगर सात साल पाँच महीने से जेल में हैं.
सर्वाइवर के वकील ने ये तर्क भी दिए कि इस मामले में जाँच सही से नहीं हुई और कुलदीप सेंगर ने अपने प्रभाव से क़ानून का ग़लत फ़ायदा उठाया है. हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि सज़ा के निलंबन पर फ़ैसला करते हुए वे इन तर्कों पर अभी ग़ौर नहीं कर सकते.
लड़की के परिवार को ख़तरा
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इमेज कैप्शन, इस मामले को लेकर देशभर में कुलदीप सेंगर के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे. (फ़ाइल फ़ोटो)
उस लड़की के वकीलों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सर्वाइवर की जान का ख़तरा भी एक ज़रूरी मुद्दा है.
कोर्ट ने भी इस बात पर ग़ौर किया कि मुक़दमे को उत्तर प्रदेश से दिल्ली ट्रांसफर किया गया.
लड़की और उनके परिवार को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश की गई. यही नहीं, कुलदीप सेंगर को लड़की के पिता के ग़ैर इरादतन हत्या के लिए दोषी भी पाया गया.
हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि फ़िलहाल लड़की और उनकी माँ को सीआरपीएफ़ की सुरक्षा मिली हुई है. और कोर्ट किसी व्यक्ति को इस डर से जेल में नहीं रख सकता कि पुलिस अपना काम सही से नहीं कर रही है.
कोर्ट ने कहा कि लड़की के इलाक़े के डीसीपी ख़ुद उनकी पर्याप्त सुरक्षा का इंतज़ाम सुनिश्चित करें.
साथ ही, कोर्ट ने कुलदीप सेंगर की ज़मानत की कुछ शर्तें भी रखीं. जैसे, वे उस लड़की के घर के पाँच किलोमीटर के भीतर नहीं जा सकते और उन्हें हर सोमवार पुलिस के सामने हाज़िरी देनी होगी.
कोर्ट ने इस मामले में बाक़ी तर्क-वितर्क पर कोई टिप्पणी नहीं की. जैसे, कुलदीप सेंगर के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं या नहीं और लड़की का जब बलात्कार हुआ तब वह नाबालिग़ थी या नहीं.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कुलदीप सेंगर को दोषी पाया गया तो उन्हें बची हुई सज़ा पूरी करनी होगी.
दिल्ली के वकील निपुण सक्सेना ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, "हाई कोर्ट के पास यह क़ानूनी अधिकार है कि वे किसी सज़ा को निलंबित कर दोषी को ज़मानत पर बाहर करें. यह एक जायज़ सवाल है कि क्या एक विधायक लोक सेवक की परिभाषा के तहत आते हैं या नहीं."
"हालाँकि, ज़मानत देते हुए एक अहम बात पर विचार करना होता है कि क्या अभियुक्त बाहर आकर गवाहों को प्रभावित कर सकता है. ऐसे में तो अच्छा था कि हाई कोर्ट अपना आख़िरी फ़ैसला ही सुना देता."
सर्वाइवर के पिता की हत्या के मामले में जब 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने कुलदीप सेंगर की सज़ा को निलंबित करने की अर्ज़ी को ठुकराया था तो ये कहा था कि सर्वाइवर की सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है.
कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता, दोषी की अपराध करने का इतिहास, जनता के विश्वास पर प्रभाव, इन चीज़ों पर भी फ़ैसला देते हुए ध्यान रखना होगा.
कोर्ट ने कहा था कि कुलदीप सेंगर को आईपीसी और पॉक्सो के तहत रेप के लिए आजीवन कारावास की सज़ा मिली है, जिससे उनकी अपराध करने के इतिहास, या 'क्रिमिनल एंटेसडेंट्स' के बारे में पता चलता है.
हालांकि, उस मामले के तथ्य अलग थे. कोर्ट ने सबूतों को देखते हुए कहा कि भले ही कुलदीप सेंगर के वकीलों ने अभियोजन के पक्ष में कई ग़लतियाँ बताईं हैं, प्रथम दृष्टया उन्हें इस मामले में ऐसी ग़लती नज़र नहीं आई जिससे सज़ा का निलंबन किया जाए.
ये भी ग़ौर करने वाली बात है कि ज़मानत देना कोर्ट का 'डिस्क्रेशनरी पॉवर' होता है, यानी जज अपने विवेक से इन मुद्दों पर फ़ैसला ले सकते हैं. फ़िलहाल हत्या से जुड़े मामले में भी कुलदीप सेंगर ने वापस सज़ा के निलंबन के लिए एक अर्ज़ी दाखिल की है, जो दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है.
सर्वाइवर की पुरानी अर्ज़ी
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इमेज कैप्शन, कुलदीप सेंगर को गंभीर यौन हिंसा के प्रावधान के तहत आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी (फ़ाइल फ़ोटो)
रेप सर्वाइवर ने ट्रायल कोर्ट के सामने भी एक अर्ज़ी डाली थी कि आईपीसी के कुछ और प्रावधानों के तहत भी कुलदीप सेंगर के ख़िलाफ़ केस चलने चाहिए.
इसमें एक प्रावधान है कि जब कोई लड़की किसी के मातहत, या किसी के नियंत्रण में हो और वह व्यक्ति उसका बलात्कार करे. इस प्रावधान में भी किसी आम नागरिक के दोषी पाए जाने के मुक़ाबले ज़्यादा गंभीर सज़ा निर्धारित की हुई है.
हालाँकि, साल 2019 में ट्रायल कोर्ट ने इस अर्जी को ख़ारिज कर दिया था क्योंकि सीबीआई ने इस अर्जी का समर्थन नहीं किया था. इस कारण, दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि वे इस सवाल में नहीं जा सकते.
वकील निपुण सक्सेना का कहना है कि सीबीआई को इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि किसी विधायक के ख़िलाफ़ किस प्रावधान के तहत केस लाया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि जब लड़की की नए प्रावधान लाने की अर्जी ख़ारिज हुई थी तब उन्हें भी इस बात की अपील करनी चाहिए थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित