नाइजीरिया में इतने अपहरण क्यों होते हैं, क्या इसे रोकने के लिए सेना भेजेंगे ट्रंप - दुनिया जहान
नाइजीरिया में अपहरण की वारदातें लगातार बढ़ती जा रही हैं. दिसंबर में नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला टिनूबू ने इस संकट को आपात स्थिति घोषित कर दिया है.
नाइजीरिया में इतने अपहरण क्यों होते हैं, क्या इसे रोकने के लिए सेना भेजेंगे ट्रंप - दुनिया जहान

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इमेज कैप्शन, अपहरणकर्ताओं की क़ैद से छूटने के बाद एक सरकारी मकान में लाए जाते नाइजीरियन कैथोलिक स्कूल के शिक्षक
2 घंटे पहले
इस साल नवंबर में हथियारबंद लोगों ने नाइजीरिया के एक कैथोलिक स्कूल के 300 से अधिक स्टूडेंट्स और 12 शिक्षकों का अपहरण कर लिया.
कुछ हफ़्तों बाद सरकारी सुरक्षाबलों ने सौ स्टूडेंट्स को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ा लिया लेकिन बाक़ी छात्र और 12 शिक्षक अब भी अपहरणकर्ताओं के क़ब्ज़े में हैं.
नाइजीरिया में अपहरण की वारदातें बढ़ती जा रही हैं. दिसंबर में नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला टिनूबू ने इस संकट को आपात स्थिति घोषित कर दिया.
मानवाधिकार गुटों के अनुसार, नाइजीरिया में कुछ सालों में तो हज़ारों लोगों का अपहरण हो जाता है. प्रतिशोध की कार्रवाई के डर से कई बार लोग इन वारदातों की रिपोर्ट नहीं लिखवाते.
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सरकार ने अपहरणकर्ताओं को फ़िरौती देने को अवैध घोषित कर दिया है. मगर इससे भी अपहरण की वारदातें कम नहीं हुई हैं.
नाइजीरिया सरकार ने दूरस्थ क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ा दी है. मगर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का अपहरण हो रहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी चिंतित है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इससे निपटने के लिए वहां अमेरिकी सेना भेजने का प्रस्ताव रखा है. फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी इससे निपटने के लिए सहायता देने का प्रस्ताव रखा है.
अपहरण की वारदातों में वृद्धि

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इमेज कैप्शन, 2014 में उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया के एक स्कूल से बोको हराम नाम के चरमपंथी गुट ने 276 लड़कियों का अपहरण कर लिया था
लगभग दस साल पहले नाइजीरिया में अपहरण की वारदातें तेज़ी से बढ़ने लगीं. 2014 में उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया के एक स्कूल से 276 लड़कियों का अपहरण कर लिया गया. नाइजीरिया में इस्लामी शासन की मांग करने वाले गुट बोको हराम ने इस अपहरण की ज़िम्मेदारी ली.
उसने चिबूक क्षेत्र की इन स्कूली छात्राओं की रिहाई के लिए पैसे नहीं मांगे बल्कि जेल में बंद अपने लड़ाकों की रिहाई की मांग की. इस घटना की दुनिया भर में चर्चा हुई और सोशल मीडिया पर 'ब्रिंग बैक अवर गर्ल्स' अभियान चला.
यूके की एबरडीन यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस के स्कॉलर डॉक्टर कची मद्रेके की राय है कि उस घटना के बाद अपहरण की समस्या में एक नया मोड़ आया और ऐसी वारदातें तेज़ी से बढ़ने लगीं.
वह कहते हैं कि 2014 में चिबूक अपहरण कांड के बाद संगठित गिरोह और अपराधियों ने जान लिया कि स्कूली छात्रों को आसानी से बड़ी संख्या में अगवा किया जा सकता है और सरकार से फ़िरौती की बड़ी रक़म वसूली जा सकती है.
इस साल नवंबर में ही सैकड़ों लोगों का अपहरण हुआ जिनमें से अधिकांश स्कूल के स्टूडेंट्स थे. अक्सर बड़े स्तर पर होने वाली अपहरण की वारदातों के पीछे एक और कारण भी है.
डॉक्टर कची मद्रेके कहते हैं कि नाइजीरिया के उत्तर पश्चिमी इलाके में कई जंगल हैं जहां दूर-दराज़ के गांवों के लिए सुरक्षा के ठोस प्रबंध नहीं हैं. डॉक्टर कची मद्रेके कहते हैं कि इन इलाकों में अपराधी गिरोहों की कई बस्तियां हैं.

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इमेज कैप्शन, अपराधी गिरोह गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल करते हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर)
डॉक्टर मद्रेके बताते हैं कि यह गिरोह गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल करते हैं.
उनका कहना है, "अक्सर वे स्थानीय समुदाय के सदस्य होते हैं, ऐसे में किसी अपहरण के लिए कौन ज़िम्मेदार है यह पता लगाना मुश्किल होता है. इन गिरोहों ने इन इलाकों में एक समानांतर प्रशासन बना रखा है. वे किसानों से टैक्स भी वसूल करते हैं. जहां तक बोको हराम जैसे गुट की बात है, वह अपहरणों के ज़रिए देश में इस्लामी तौर-तरीके लागू करने के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाता है."
लेकिन दूसरे अपराधी गुट अपहरण के ज़रिए हज़ारों डॉलर उगाहने में कामयाब हो जाते हैं. क्षेत्र में ग़रीबी है इसलिए कई छोटे-बड़े अपराधी इस अपराध में शामिल हो जाते हैं.
फ़िरौती की रक़म कई प्रभावशाली लोगों के पास पहुंचती है. अपहरण के पीछे जो भी कारण हों मगर सरकार के लिए सैकड़ों बंधकों को छुड़वाना बहुत मुश्किल होता है.
डॉक्टर कची मद्रेके बताते हैं कि हमले की सूचना मिलने के बाद भी पुलिस बल अक्सर घंटों बाद घटनास्थल पर पहुंचता है.
आमतौर पर यह पुलिस बल प्रांत की राजधानियों से भेजे जाते हैं और दूर दराज़ के जंगलों में घिरे इलाके तक पहुंचने में उन्हें काफ़ी समय लगता है, जिस दौरान अपराधी बंधकों को लेकर भागने में सफल हो जाते हैं.
अब सवाल उठता है कि अपराधी कुछ ख़ास किस्म के लोगों-स्टूडेंट्स को ही निशाना क्यों बनाते हैं?
अपहरण का मक़सद

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इमेज कैप्शन, नाइजीरिया में स्कूल के बच्चों का अपहरण भी बड़े स्तर पर होता है
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के 'सेंटर फॉर ग्लोबल अफ़ेयर्स' में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर जूमो अयेंडेली बताती हैं कि कई अपराधी पहले शिकारी हुआ करते थे, उनके पास हथियार होते थे. अब ये अपराधी एके-47 जैसी राइफल लेकर मोटरसाइकिल और ट्रकों में बैठकर आते हैं. स्कूल या गांवों को घेरकर बच्चों को ट्रकों में भरकर अपने ठिकानों पर ले जाते हैं और उनकी रिहाई के बदले पैसे उगाहते हैं.
उन्होंने कहा, "ये अपराधी अक्सर स्थानीय इमाम, बड़े चर्च के पादरियों या अन्य सदस्यों को निशाना बनाते हैं. आम तौर पर यह पादरी, इमाम या दूसरे लोग अपने समुदाय के प्रभावशाली लोग होते हैं. इसलिए चर्च या उनका समुदाय क्राउड फ़ंडिंग के ज़रिए उनकी रिहाई के लिए फ़िरौती की रक़म जमा कर के अपहरणकर्ताओं तक पहुंचा देता है. स्कूल के बच्चों का अपहरण भी बड़े स्तर पर होता है. अपराधी ज्यादातर स्कूल के लड़कों के बजाय लड़कियों का अपहरण करते हैं क्योंकि इसकी चर्चा अधिक होती है."
डॉक्टर जूमो अयेंडेली ने बताया कि यह अपराधी गिरोह किसानों को भी निशाना बनाते हैं. इसी साल उन्होंने कई किसानों को धमका कर उनसे टैक्स वसूला, उन्हें बंधक बनाया. साथ ही धमकी भी दी कि अगर उन्होंने सरकार के साथ सहयोग किया तो उन पर और भारी टैक्स लादा जाएगा.
जूमो अयेंडेली के अनुसार, वे व्यापारियों और श्रमिक संगठन के सदस्यों का भी अपहरण करते हैं. यानि ऐसे लोगों को निशाना बनाया जाता है जिनके पास फिरौती देने के लिए पैसे होते हैं.
क्या सरकार और इन अपराधी गुटों के बीच बातचीत होती रहती है?
डॉक्टर जूमो अयेंडेली कहती हैं कि सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समुदाय के नेताओं के माध्यम से बात होती है और कई बार स्थानीय नेता जाकर अपहरणकर्ताओं से बंधकों की रिहाई के लिए बात करते हैं. कई बार बंधकों को पैसे लेकर या जेल में बंद अपराधियों की रिहाई के एवज़ में मुक्त कराया जाता है.
हालांकि आधिकारिक तौर पर सरकार का कहना है कि वह अपराधियों के साथ समझौता नहीं करती. मगर स्थानीय समाचार माध्यमों की ख़बरों के अनुसार, बंधकों को रिहा करने के लिए या तो बड़ी सैनिक कार्रवाई होती है या अपहरणकर्ताओं के जेल में बंद सदस्यों को चुपचाप छोड़ दिया जाता है.
कई लोग जो फ़िरौती देते हैं वह इसका सार्वजनिक तौर पर इसलिए ज़िक्र नहीं करते क्योंकि उन्हें डर होता है कि उन्हें दोबारा अगवा कर लिया जाएगा.
समस्या की जड़

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इमेज कैप्शन, लीबिया में अस्थिरता के बाद वहां से नाइजारिया में हथियारों की तस्करी बढ़ी है
नाइजीरिया में छह प्रांत हैं. जिनेवा स्थित 'सेंटर ऑन आर्म्ड ग्रुप्स' के रिसर्च फ़ेलो जेम्स बार्नेट नाइजीरिया में अपहरण जैसे अपराधों पर कई सालों से अध्ययन करते रहे हैं. उनका कहना है कि अपहरण की अधिकांश वारदातें उत्तर पश्चिमी और उत्तर मध्य क्षेत्र में होती हैं जहां कई इलाकों तक पहुंचना मुश्किल होता है. उनके अनुसार इस समस्या की जड़ दरअसल 2014 के चिबूक अपहरण कांड से बहुत पुरानी है.
उन्होंने आगे कहा कि 1970 के दशक में नाइजीरिया के तेल उत्पादक देश बनने के बाद से ही इस प्रकार के अपराध शुरू हो गए थे. उस समय नाइजीरिया के दक्षिणी क्षेत्रों में तेल उत्पादन के चलते सरकार और राजनेताओं के पास काफ़ी धन आना शुरू हो गया था. वहीं, उत्तरी क्षेत्र में कृषि उद्योग की अनदेखी होती रही और बेरोज़गारी फैली और अपराध बढ़ने लगे.
जहां नाइजीरिया में तेल उद्योग अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग बन गया, वहीं कृषि उत्पादन घटने लगा. साथ ही तेल बाज़ार के उतार-चढ़ावों से भी देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने लगी.
जेम्स बार्नेट के अनुसार, 2010 के दशक में तेल की क़ीमतों में गिरावट आई और देश में महंगाई आसमान छूने लगी. वह कहते हैं कि यह एक संयोग नहीं है कि इसी दौरान अपहरण जैसे अपराधों में वृद्धि हुई.
कोविड महामारी के दौरान लॉकडाउन से अर्थव्यस्था और कमज़ोर हो गई और ग़रीबी फैल गयी जिसके चलते अपराधी गुटों के लिए नए लोगों को अपहरण जैसी वारदातों में शामिल करना आसान हो गया. 2011 में उत्तर अफ़्रीकी देश लीबिया की सरकार गिर गई और वहां की अस्थिरता के बाद कई इस्लामी और चरमपंथी गुट मज़बूत होने लगे.

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इमेज कैप्शन, नाइजीरिया में कितने अपराधी गिरोह सक्रिय हैं इसका पता लगाना आसान नहीं है
जेम्स बार्नेट के अनुसार, लीबिया से पूरे अफ़्रीका में हथियारों की तस्करी शुरू हो गई और अपराधी गुटों को आसानी से ऑटोमैटिक राइफ़लें और दूसरे हथियार सस्ती कीमत पर मिलने लगे. इस वजह से कई प्रभावशाली लोगों के लिए अपराधी गुट बनाना बहुत आसान हो गया.
अपहरण की गतिविधियों में दो प्रकार के गुट शामिल रहे हैं. एक तो वह जो पैसे और राजनीतिक प्रभाव हासिल करना चाहते हैं और दूसरे वह जो अपना मज़हबी अतिवादी एजेंडा आगे बढ़ाना चाहते हैं और उसके ज़रिए देश की राजनीति में पैर जमाना चाहते हैं. मगर क्या देश के उत्तर पश्चिम में पैसे के लिए अपहरण करने वाले अपराधी गिरोहों और उत्तर पूर्व के जिहादी गुटों के बीच कोई समन्वय होता है?
जेम्स बार्नेट का कहना है कि पिछले पांच सालों में अपराधी गिरोहों और जिहादी गुटों के बीच सहयोग होता रहा है लेकिन वह हमेशा कायम नहीं रहता.
जिहादी गुटों ने इन अपराधी गुटों को अपनी मज़हबी सोच की ओर आकर्षित करने की कोशिश की है. मगर इस उद्देश्य में उन्हें ख़ास सफलता हासिल नहीं हुई है क्योंकि अपराधी गुट पहले ही काफ़ी राजनीतिक प्रभाव हासिल कर चुके हैं और जिहादी गुटों में शामिल होकर वे अपनी स्वायत्तता नहीं खोना चाहते.
नाइजीरिया में कितने अपराधी गिरोह सक्रिय हैं, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. ऐसे में नाइजीरिया की सरकार के पास इस समस्या से निपटने के लिए क्या विकल्प हैं?
निपटने के तरीके़

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इमेज कैप्शन, अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि वह नाइजीरिया में सेना भेजने के बारे में सोच रहे हैं
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह नाइजीरिया में इस्लामी जिहादी गुटों को जड़ से उखाड़ने के लिए सेना भेजने के बारे में सोच रहे हैं.
अमेरिकी दक्षिणपंथी नेता कह रहे हैं कि जिहादी गुट नाइजीरिया में ईसाइयों पर सुनियोजित तरीके से हमले कर रहे हैं. हालांकि नाइजीरिया सरकार इन दावों का खंडन करती है.
नाइजीरिया में अबूजा स्थित 'सेंटर फॉर डेमोक्रेसी एंड डेवेलपमेंट संस्था' में रिसर्च एनालिस्ट डेंगियेफ़ा अंगालपू सशस्त्र गिरोहों का पांच सालों से अध्ययन कर रहे हैं. उनके अनुसार किसी विदेशी ताक़त का नाइजीरिया में सीधे सैनिक हस्तक्षेप ग़लत होगा.
वह कहते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए नाइजीरिया को विदेशी मदद की ज़रूरत है. नाइजीरिया के पास संसाधनों और टेक्नोलॉजी की कमी है. इसलिए नाइजीरिया में सेना भेजने के बजाय अमेरिका और दूसरे देशों को नाइजीरिया के साथ ख़ुफ़िया जानकारी साझा करनी चाहिए. उसे टेक्नोलॉजी उपलब्ध करानी चाहिए और सहयोग करना चाहिए.
नवंबर 2025 में जब नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला टिनूबू ने इस संकट पर काबू पाने के लिए बीस हज़ार सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति करने का ऐलान भी किया था. मगर यह करने में समय लगेगा. डेंगियेफ़ा अंगालपू कहते हैं कि इस दौरान कुछ व्यावहारिक कदम ज़रूर उठाए जा सकते हैं.
डेंगियेफ़ा अंगालपू कहते हैं कि आमतौर पर अपहरणकर्ता मोटरसाइकिलों पर सवार होकर आते हैं. मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल व्यावसायिक तौर पर भी किया जाता है. एक काम यह किया जा सकता है कि मोटरसाइकिलों पर ट्रैकिंग सिस्टम लगा दिए जाएं. जब कई सारी मोटरसाइकिलें एक दिशा में जाती दिखायी दें तो पता चल सकता है कि वे अपहरणकर्ता हैं और किस दिशा में जा रहे हैं.
ये मोटरसाइकिलें पेट्रोल भरवाने के लिए कई जगहों पर रुकती हैं. वहां भी उनकी निगरानी की जा सकती है.

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इमेज कैप्शन, शिक्षा प्रणाली सुधारने से नाइजीरिया की समस्या का हल हो सकता है
डेंगियेफ़ा अंगालपू याद दिलाते हैं कि अपहरण की ज्यादातर वारदातें जंगलों से घिरे दूर दराज़ के इलाकों में होती हैं जहां पक्की सड़कें नहीं होती हैं और सुरक्षाबलों का समय पर घटनास्थल पर पहुंचना मुश्किल होता है. इसलिए सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए इन क्षेत्रों में अच्छी सड़कें बनाना भी आवश्यक है.
इस समस्या से जुड़ा दूसरा मुद्दा नकद या कैश का है जो अपहरणकर्ताओं को फिरौती के रूप में दिया जाता है. इस पर लगाम लगाने के लिए नाइजीरिया सरकार ने अर्थव्यवस्था को कैशलैश बनाने या डिजिटल पेमेंट की ओर ले जाने के लिए कदम उठाए हैं. इससे बाज़ार में कैश की किल्लत पैदा हो गई है और उसी के साथ अपहरण की वारदातें भी कुछ कम हुई हैं.
डेंगियेफ़ा अंगालपू ने कहा, "अपहरण का धंधा कैश आधारित अर्थव्यवस्था में ही फलता-फूलता है. लेकिन अगर लोगों के पास कैश होगा ही नहीं तो इन अपहरणकर्ताओं को पैसे नहीं मिल पाएंगे. इसके लिए बैंकिंग व्यवस्था में सुधार होना चाहिए और कैश का इस्तेमाल घटना चाहिए जिससे अपहरण की वारदातें भी कम होंगी."
डेंगियेफ़ा अंगालपू का मानना है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार भी आवश्यक है क्योंकि कई अपहरणकर्ताओं की उम्र 13 से 17 साल के बीच होती है. इन बच्चों को दरअसल स्कूल में होना चाहिए लेकिन स्कूली शिक्षा के अभाव में वो अपराध की दुनिया में फंस जाते हैं और स्कूलों को ही निशाना बनाते हैं.
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- नाइजीरिया देश में अपहरण की वारदातों को कैसे रोक सकता है? अपहरण की वारदातें ऐसे दूरस्थ इलाकों में अधिक हो रही हैं जहां सड़कों और प्रशासनिक सुविधाओं की कमी है.
विशेषज्ञों के अनुसार इसमें सुधार करने और शिक्षा प्रणाली को सुधारने से इस समस्या को हल करने में मदद मिल सकती है. नाइजीरिया में सिर्फ़ ईसाई समुदाय ही नहीं बल्कि कई समुदाय अपहरणकर्ताओं का शिकार हो रहे हैं. इसे काबू में करने के लिए देश में अधिक निवेश और दीर्घकालिक नीतियों की ज़रूरत है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.