बैकडेट में लाइसेंस बहाली, बिना सत्यापन प्रमाणपत्र जारी
ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ विद्युत निरीक्षक गौरीशंकर जीनगर के खिलाफ हाल ही में हुई विभागीय जांच में कई गंभीर और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जांच में पाया गया कि निलंबित विद्युत ठेकेदार फर्मों के लाइसेंस नियमों की अनदेखी करते हुए फर्जी तरीके से बहाल किए गए। शिकायत मिलने के बाद ऊर्जा विभाग ने दो सदस्यीय जांच समिति गठित की थी। समिति की अध्यक्षता आरवीपीएन की सचिव (प्रशासन) अल्का मीणा ने की, जबकि सदस्य के रूप में जयपुर डिस्कॉम के संभागीय मुख्य अभियंता आर.के. जीनवाल को शामिल किया गया। समिति ने पांच पेज की विस्तृत जांच रिपोर्ट विभाग को सौंपी है। जांच एडवोकेट विशाल टांक की शिकायतों, वरिष्ठ विद्युत निरीक्षक कार्यालय के रिकॉर्ड, स्पष्टीकरण, दस्तावेजों और व्यक्तिगत सुनवाई के आधार पर की गई। रिपोर्ट के अनुसार, अमर इंटरप्राइजेज (अनूपगढ़) का लाइसेंस 21 जून 2022 को निलंबित किया गया था। नियमों के तहत एक माह के भीतर नए विद्युत सुपरवाइजर का भौतिक सत्यापन अनिवार्य था, लेकिन यह प्रक्रिया 34 माह तक पूरी नहीं की गई। इसके बावजूद फर्म को पहले 3 अप्रैल 2025 को बहाल दिखाया गया और बाद में शुद्धिपत्र जारी कर बैकडेट में 4 जून 2024 से बहाली दर्शाई गई। समिति को पिछली तारीख में बहाली से जुड़ा कोई वैध नियम या दस्तावेज नहीं मिला। छह माह से अधिक अवधि के निलंबन के बाद बहाली को विभागीय नियम 14(6) का उल्लंघन माना गया। जांच में सुपरवाइजर बाबूलाल शर्मा की नियुक्ति भी संदिग्ध पाई गई। शिकायत के अनुसार, वे एक ही अवधि में दो अलग-अलग फर्मों में कार्यरत दर्शाए गए, जबकि उनके भौतिक सत्यापन का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं मिला। इसी तरह, मैसर्स शेखावाटी बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड, सीकर के मामले में भी अनियमितताएं सामने आईं। फर्म का लाइसेंस 8 मई 2024 को निलंबित हुआ, जबकि बहाली 27 जून 2025 को की गई, जो तय समय सीमा के विपरीत है। रेलवे को भेजे गए पत्रों में वरिष्ठ विद्युत निरीक्षक के जवाबों में भी भिन्नता पाई गई। समिति ने स्पष्ट किया कि दोनों मामलों में निलंबन–बहाली प्रक्रिया, सुपरवाइजर नियुक्ति, सत्यापन और रिकॉर्ड प्रबंधन में गंभीर अनियमितताएं हुई हैं, जिन पर आगे विभागीय कार्रवाई आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि जीनगर के खिलाफ 14 साल पुराने आय से अधिक संपत्ति मामले में हाल ही में अभियोजन स्वीकृति भी मिल चुकी है।