इसराइल क्या पाकिस्तान पर तैयार नहीं है, इस्लामाबाद क्यों दे रहा है सफ़ाई?
पाकिस्तान के भीतर भी इस बात का विरोध हो रहा है कि ग़ज़ा के मामले में शहबाज़ शरीफ़ की सरकार कोई भी ऐसा क़दम ना उठाए.
इसराइल क्या पाकिस्तान पर तैयार नहीं है, इस्लामाबाद क्यों दे रहा है सफ़ाई?

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इमेज कैप्शन, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार का कहना है कि पाकिस्तान सिर्फ़ शांति बनाए रखने और सोशल वर्क के लिए ग़ज़ा जाएगा
3 घंटे पहले
"अगर हमें यह कहा गया कि वहाँ जाकर लड़ना शुरू कर दें, हमास को निशस्त्र करें और उनकी सुरंगों को ख़त्म करें, तो यह हमारा काम नहीं है. यह एक मुसलमान को दूसरे से लड़ाने वाली बात होगी. हम सिर्फ़ शांति बनाए रखने और सोशल वर्क के लिए वहाँ जाने को तैयार हैं."
यह वह स्पष्टीकरण है, जो पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने शुक्रवार को एक न्यूज़ ब्रीफ़िंग में दी.
उनसे ग़ज़ा में 3500 पाकिस्तानी सैनिक भेजने की मीडिया रिपोर्ट्स के बारे में सवाल पूछा गया था.
यह पहला मौक़ा नहीं है, जब पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय या ख़ुद विदेश मंत्री को ग़ज़ा में 'इंटरनेशनल फ़ोर्स' के लिए पाकिस्तानी सेना भेजने के मामले पर स्पष्टीकरण देना पड़ा हो.
ब्रिटेन में रहने वाली पाकिस्तान की लेखिका आयशा सिद्दीक़ा ने इसराइली अख़बार 'हारेट्ज़' में अपने एक लेख में दावा किया था कि राष्ट्रपति ट्रंप, फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर से ग़ज़ा में अपनी सेना भेजने के लिए कह सकते हैं और इस मामले पर फ़ैसला लेना एक बहुत बड़ा जुआ होगा.
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शुक्रवार की न्यूज़ ब्रीफ़िंग में इसहाक़ डार ने कहा था कि पाकिस्तान के नागरिक और सैन्य नेतृत्व के बीच इस मामले पर पूरी सहमति है कि 'हम ग़ज़ा में बस शांति स्थापित करने के लिए जाएँगे.'
इसहाक़ डार के मुताबिक़ शुरुआत में आठ देशों ने इंटरनेशनल स्टेबिलाइज़ेशन फ़ोर्स (आईएसएफ़) का हिस्सा बनने की रज़ामंदी दी थी और अब इन देशों की संख्या बढ़कर 20 हो गई है.
"इसलिए कोई और देश यह काम करना चाहता है तो करे, हम इस मामले में बहुत स्पष्ट हैं कि हम एक मुस्लिम देश की मदद और शांति अमन क़ायम रखने के लिए जाने को तैयार हैं."
विदेश मंत्री ने उन मीडिया रिपोर्ट्स का भी खंडन किया कि पाकिस्तान ने अपने 3500 सैनिक ग़ज़ा भेजने की पेशकश की है.
ग़ज़ा में पाकिस्तानी सेना भेजने का मामला सबसे पहले कब सामने आया?
बार-बार पाकिस्तान को इस पर सफ़ाई क्यों देनी पड़ रही है? विदेश मंत्री का यह ताज़ा बयान क्या दर्शाता है? बीबीसी ने यह जानने के लिए विश्लेषकों से बात की है.
मार्को रुबियो का पाकिस्तान को शुक्रिया कहना

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इमेज कैप्शन, रूबियो ने कहा था कि ग़ज़ा स्टेबिलाइज़ेशन फ़ोर्स का हिस्सा बनने की पेशकश के लिए पाकिस्तान के शुक्रगुज़ार हैं
नवंबर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ग़ज़ा में शांति स्थापना के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से पेश किए गए 20-सूत्री योजना के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें ग़ज़ा में एक अंतरराष्ट्रीय शांति सेना भेजने की बात भी शामिल थी.
पाकिस्तान ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.
इसके बाद पाकिस्तान में यह अटकलें शुरू हो गई थीं कि राष्ट्रपति ट्रंप के फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के साथ अच्छे संबंधों को देखते हुए पाकिस्तान भी ग़ज़ा में अपनी सेना भेज रहा है.
नवंबर में पहली बार इस मामले पर बात करते हुए विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने कहा था कि ग़ज़ा में शांति के लिए प्रस्तावित आईएसएफ़ में शामिल होने के लिए पाकिस्तान अपने सैनिक भेजने को तैयार है, लेकिन वह हमास को निहत्था करने के काम में शामिल नहीं होगा.
इसहाक़ डार का कहना था कि पाकिस्तान यह साफ़ कर चुका है कि ग़ज़ा में शांति सेना की तैनाती की योजना को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंज़ूरी मिली होनी चाहिए.
हमास को निहत्था करने के बारे में आईएसएफ़ की भूमिका पर उन्होंने साफ़ किया कि दूसरे महत्वपूर्ण देशों की तरह पाकिस्तान भी इसके लिए तैयार नहीं है.
उनका कहना था कि यह काम फ़लस्तीन में क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों का है.
इसी महीने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा था, "हम इसका (ग़ज़ा स्टेबिलाइज़ेशन फ़ोर्स) हिस्सा बनने की पेशकश या कम से कम इस पर ग़ौर करने के लिए पाकिस्तान के बहुत शुक्रगुज़ार हैं."
मार्को रुबियो ने कहा कि पाकिस्तान इस मामले में एक महत्वपूर्ण देश है, "अगर वह इस पर सहमत हो जाते हैं."
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि फ़ोर्स के मैनडेट, कमान और फ़ंडिंग के मामलों पर अब भी चर्चा जारी है. उन्होंने बताया कि अगला चरण 'बोर्ड ऑफ़ पीस' और 'फ़लस्तीनी टेक्नोक्रेट ग्रुप' की स्थापना है, जो रोज़मर्रा के गवर्नेंस के मामलों को देखेगा.

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इमेज कैप्शन, पाकिस्तान की धार्मिक पार्टियों ने भी एक कार्यक्रम में सरकार पर ज़ोर दिया था कि वह हमास को निहत्था करने के लिए ग़ज़ा में सेना भेजने से परहेज़ करे.
मार्को रुबियो के अनुसार, "जब यह मामला तय हो जाएगा, तो मुझे लगता है कि इससे हमें स्टेबिलाइज़ेशन फ़ोर्स को मज़बूत करने की इजाज़त मिलेगी, जिसमें यह भी शामिल होगा कि इसका भुगतान कैसे किया जाएगा, उनके काम के नियम क्या होंगे और ग़ैर-फ़ौजी मामलों में उनकी भूमिका क्या होगी."
मार्को रुबियो के बयान से एक दिन पहले पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ताहिर अंदराबी ने कहा था कि पाकिस्तान ने इस फ़ोर्स के लिए अपनी सेना भेजने का अभी तक कोई फ़ैसला नहीं किया है.
पिछले हफ़्ते पाकिस्तान की धार्मिक पार्टियों ने भी एक कार्यक्रम में सरकार पर ज़ोर दिया था कि वह हमास को निहत्था करने के लिए ग़ज़ा में सेना भेजने से परहेज़ करे.
उनकी घोषणा में कहा गया कि कई मुस्लिम देश हमास को निहत्था करने से इनकार कर चुके हैं और अब पाकिस्तान पर इसके लिए दबाव बढ़ाया जा रहा है.
'मजलिस इत्तेहाद-ए-उम्मत पाकिस्तान' की तरफ़ से कराची में हुए इस कॉन्फ़्रेंस में मुफ़्ती तक़ी उस्मानी, मौलाना फ़ज़लुर्रहमान और मुफ़्ती मुनीबुर्रहमान समेत अलग-अलग विचारधाराओं के उलेमा शामिल हुए थे.
इसी बीच न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पाकिस्तान के फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर आने वाले दिनों में अमेरिका का दौरा करने वाले हैं, जहाँ उनकी मुलाक़ात राष्ट्रपति ट्रंप से होने की उम्मीद है.
लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि फ़िलहाल फ़ील्ड मार्शल का अमेरिका का कोई दौरा तय नहीं है.
इसहाक़ डार का बयान क्या बताता है?

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इमेज कैप्शन, पाकिस्तान सैद्धांतिक रूप से इस फ़ोर्स में शामिल होने के लिए तैयार है (फ़ाइल फ़ोटो)
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर हसन अस्करी रिज़वी कहते हैं कि एक बात तो तय है कि पाकिस्तान सैद्धांतिक रूप से इस फ़ोर्स में शामिल होने के लिए तैयार है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "पाकिस्तान चाहता है कि यह फ़ोर्स संयुक्त राष्ट्र के किसी ढाँचे या उसके पीस कीपिंग मिशन के तहत बने, जिसमें पाकिस्तान अतीत में विभिन्न देशों में अपनी सेनाएँ भेजता रहा है.'
उनके अनुसार, "अगर अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कोई सेना बनाता है, जिसे इसराइल का भी समर्थन हासिल हो तो उसके लिए राज़ी होना पाकिस्तान के लिए बहुत मुश्किल होगा."
डॉक्टर अस्करी कहते हैं कि अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान सरकार और सेना को स्थानीय तौर पर कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा क्योंकि इससे यह संदेश जाएगा कि पाकिस्तान, अमेरिका और इसराइल के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है.
वह कहते हैं, "यही वजह है कि इस मामले पर अब भी कन्फ्यूज़न है. इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने अच्छे संबंधों को बिगाड़ नहीं सकता और दूसरी तरफ़ जनता का दबाव है, इसलिए कोई भी फ़ैसला सरकार के लिए बड़ा चैलेंज होगा."
अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने सोमवार को 'डॉन' अख़बार में अपने कॉलम में लिखा कि किसी भी हालत में "पाकिस्तानी सेना की तैनाती के दौरान उसे इसराइली सेना के साथ संपर्क करना होगा, जो बिल्कुल यक़ीन करने लायक़ बात नहीं."
मलीहा लोधी के मुताबिक़ लेबनान में संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों पर इसराइली सेना की फ़ायरिंग एक आम बात है.
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर इसराइली सेना ने आईएसएफ़ में शामिल पाकिस्तानी सैनिकों पर फ़ायरिंग शुरू कर दी, तो क्या होगा?
मलीहा लोधी कहती हैं कि इसराइल के साथ संपर्क या इस मामले में सहयोग उसे मान्यता देने के बराबर होगा, "यह पाकिस्तान की फ़लस्तीन विवाद से जुड़ी दशकों पुरानी नीति के ख़िलाफ़ होगा."
ट्रंप की 20-सूत्री ग़ज़ा योजना और शांति सेना

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इमेज कैप्शन, इसराइल के प्रधानमंत्री फ़्लोरिडा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिल रहे हैं, जिसमें ग़ज़ा शांति सेना भी एजेंडे में शामिल होगा (फ़ाइल फ़ोटो)
नवंबर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ग़ज़ा में शांति स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप की 20-सूत्री योजना के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया था.
इस प्रस्ताव में विभिन्न देशों की सेनाओं को मिलाकर एक 'अंतरराष्ट्रीय स्थिरता सेना' का गठन भी शामिल है. हालांकि इस फ़ोर्स में किन देशों की सेनाएँ होंगी, उनके नाम सामने नहीं आए थे.
सुरक्षा परिषद में पेश इस प्रस्ताव के पक्ष में ब्रिटेन और फ़्रांस समेत 13 देशों ने वोट दिया, जबकि रूस और चीन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
पाकिस्तान ने भी ग़ज़ा के मामले में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया.
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्थिरता बल, इसराइल, मिस्र और हाल में ही ट्रेनिंग पाने वाली सत्यापित फ़लस्तीनी पुलिस फ़ोर्स के साथ मिलकर सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा और हमास सहित राज्य-विरोधी समूहों को निहत्था करने में मदद करेगा.
याद रहे कि अब तक ग़ज़ा में पुलिस हमास के नियंत्रण में काम करती है.
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के राजदूत माइक वॉल्ट्ज़ ने सुरक्षा परिषद को बताया कि अंतरराष्ट्रीय बल के लक्ष्य यह होंगे कि वह "क्षेत्र को सुरक्षित बनाए, ग़ज़ा में ग़ैर फ़ौजी अभियानों का समर्थन करे, आतंकवादी नेटवर्क को ख़त्म करे, हथियारों को नष्ट करे और फ़लस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे."
हमास ने संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था.
हमास ने टेलीग्राम पर जारी संदेश में कहा था कि ग़ज़ा में "अंतरराष्ट्रीय संरक्षण का जो सिस्टम थोपा जा रहा है, उसे हमारे लोगों और समूहों ने ख़ारिज कर दिया है."
हमास को निहत्था करने का ऐसा तरीक़ा, जो दोनों पक्षों को क़बूल हो, एक ऐसा मामला है, जिसे विशेषज्ञ युद्धविराम समझौते को बनाए रखने और दूसरे चरण की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बताते हैं.
हिब्रू भाषा के इसराइली अख़बार 'इसराइल हायोम' के अनुसार, तुर्की लगातार 'इंटरनेशनल स्टेबिलाइज़ेशन फ़ोर्स' का हिस्सा बनने के लिए दबाव डाल रहा है.
अख़बार के अनुसार, इस फ़ोर्स के निर्देश में हमास को निशस्त्र करना भी शामिल होगा.
इस अख़बार में पिछले हफ़्ते छपे एक लेख में कहा गया कि नेतन्याहू इस मामले में कड़ा रुख़ रखते हैं कि तुर्की को इस फ़ोर्स में शामिल नहीं होने दिया जाएगा और अमेरिका भी इसराइल के इस स्टैंड के साथ है.
अभी तक किसी भी देश ने आधिकारिक तौर पर इंटरनेशनल स्टेबिलाइज़ेशन फ़ोर्स में शामिल होने की घोषणा नहीं की है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.