एमबीबीएस के अलावा मेडिकल के वो कोर्स, जो करियर का बढ़िया विकल्प बन सकते हैं
डॉक्टर बनने के लिए भारत में जो परीक्षा होती है वह NEET कहलाती है. लेकिन अगर इसमें कामयाबी न मिले या फिर कोई ये परीक्षा न देना चाहे, तो भी उनके पास मेडिकल फ़ील्ड में करियर बनाने के लिए कई रास्ते हैं.
एमबीबीएस के अलावा मेडिकल के वो कोर्स, जो करियर का बढ़िया विकल्प बन सकते हैं

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इमेज कैप्शन, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 13 लाख 86 हज़ार से अधिक एलोपैथिक डॉक्टर हैं
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- Author, प्रियंका झा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
- 1 दिसंबर 2025
दिल्ली के रहने वाले दिव्य शर्मा ने डॉक्टर बनने का सपना देखा था. लेकिन मेडिकल तक पहुंचाने वाले नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) में कामयाबी नहीं मिली तो उन्होंने अपने प्लान बी का रुख़ किया.
प्लान बी था आयुर्वेद. आज वो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में BAMS (बैचलर्स ऑफ़ आयुर्वेदिक मेडिसीन एंड सर्जरी) की पढ़ाई कर रहे हैं.
हर साल लाखों बच्चे नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) को पार करने की कोशिश करते हैं.
कई कामयाब होते हैं, लेकिन कई ऐसे भी होते हैं, जो कामयाब नहीं हो पाते. तो क्या ऐसा होने पर कदम थम जाते हैं? नहीं.
दिव्य का अनुभव यही बताता है कि नीट ना क्लियर हो पाना किसी मंज़िल का अंत नहीं, बल्कि मेडिकल फ़ील्ड के भीतर कई दूसरे रास्तों की शुरुआत भी हो सकता है.
उन्होंने साल 2020 में बारहवीं की परीक्षा पास की. इसके बाद उन्होंने लगातार दो साल 'नीट' पास करने की कोशिश की. 2020 में उनके साथ 13 लाख से ज़्यादा स्टूडेंट्स ने ये इम्तहान दिया था, लेकिन पास हुए साढ़े सात लाख के क़रीब.
लेकिन जो रह गए उनका क्या?
दिव्य कहते हैं कि पहला विकल्प तो नीट को एक और मौका देना है.
उन्होंने कहा, "जैसा कि मेरे साथ हुआ, मेरी पहली कोशिश कुछ नंबरों से रह गई थी. लगा कि दूसरे में तो निकल ही जाएगा. मगर मेरे मामले में ऐसा नहीं हुआ. हालांकि, कई स्टूडेंट दूसरे अटेम्प्ट में ये परीक्षा निकाल ले जाते हैं."
करियर कनेक्ट में इस बार उन रास्तों और विकल्पों को खंगालने की कोशिश, जो नीट के अलावा दूसरी राह दिखा सकते हैं.
दूसरे विकल्प कौन से हो सकते हैं?

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भारत में एमबीबीएस (MBBS) कोर्स में दाख़िला लेने के लिए जो परीक्षा पास करनी होती है, वो नीट कहलाती है.
नेशनल मेडिकल कमीशन के मुताबिक, भारत में 13 लाख, 86 हज़ार, 190 एलोपैथिक डॉक्टर हैं.
और आयुष मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (AYUSH) जैसी पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणालियों में साढ़े सात लाख से ज़्यादा रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर हैं.
जब हम बात मेडिकल फ़ील्ड की करते हैं तो सबसे पहले दिमाग में डॉक्टर बनने का ख़्याल आता है. लेकिन MBBS के अलावा भी कई ऐसे कोर्स हैं, जो मेडिकल फ़ील्ड में अच्छा करियर देते हैं.
इस पर ज़ोर देते हुए एजुकेशनिस्ट और करियर काउंसलर डॉक्टर अमित त्रिपाठी कहते हैं कि भारत में लोगों को गलतफ़हमी है कि मेडिकल क्षेत्र का मतलब सिर्फ़ डॉक्टर बनना है.
त्रिपाठी ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "स्वास्थ्य सेवा की बात करें तो केवल 15–20% लोग डॉक्टर होते हैं, जबकि 80–85% हेल्थकेयर वर्कफ़ोर्स एलाइड हेल्थकेयर प्रोफे़शनल का है. इसमें नर्सिंग, रेडियोलॉजी, लैब टेक्नोलॉजी, फिज़ियोथेरेपी, फार्मेसी, ऑपरेशन थिएटर टेक्निशियन जैसे पेशे शामिल हैं. और उभरते हुए क्षेत्रों में चिरोप्रैक्टिक और कॉस्मेटिक मेडिसिन भी है. यही आंकड़ा बताता है कि NEET में असफलता का मतलब करियर का अंत नहीं है."
पैरामेडिकल कोर्स भी बन सकते हैं रास्ता
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए मोशन एजुकेशन में ज्वाइंट डायरेक्टर और नीट डिवीज़न के हेड अमित वर्मा बताते हैं कि अगर किसी का नीट नहीं निकल रहा हो तो उनके पास कई पैरामेडिकल कोर्स के विकल्प हमेशा रहते हैं.
वह बताते हैं कि हर साल जनवरी-फ़रवरी के बीच नीट का फॉर्म निकलता है और परीक्षा मई में होती है. परीक्षा की तारीख़ की घोषणा दिसंबर या जनवरी तक हो जाती है. मगर आम तौर पर इसके नतीजे तब आते हैं, जब आधा जून बीत चुका होता है.
अमित के मुताबिक सिर्फ़ नीट के सहारे रहने के बजाय स्टूडेंट को चाहिए कि वे अपना प्लान बी तैयार रखें और नीट की तैयारी के अलावा इन पैरामेडिकल कोर्स पर भी नज़र दौड़ाएं. उनके मुताबिक प्लान बी की तैयारी करने का सही समय यही है, क्योंकि इस समय स्टूडेंट के हाथ में परीक्षा के लिए छह महीने का वक्त रहता है.
विरोहन पैरामेडिकल और अलाइड हेल्थकेयर प्रोग्राम्स के लिए कई जाने-माने कॉलेजों का इंडस्ट्री पार्टनर है.
इसके सह-संस्थापक नलिन सलूजा कहते हैं कि स्टूडेंट के हक़ में सबसे बड़ी बात यही है कि उन्हें अधिकांश कोर्सेज़ के लिए कोई अलग से तैयारी नहीं करनी पड़ती.
वह कहते हैं, "बीएससी नर्सिंग, फ़िज़ियोथैरेपी, अलाइड हेल्थकेयर की बुनियाद ग्यारहवीं और बारहवीं की फ़िज़िक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉज़ी पर ही आधारित होती है. जो आप NEET के लिए भी पढ़ते हैं."
वह कहते हैं, "आमतौर पर इन सभी कोर्स के लिए जो एप्लीकेशन फॉर्म हैं वे मार्च से अगस्त के बीच में आते हैं. बल्कि स्टूडेंट्स को NEET के रिज़ल्ट का इंतज़ार करते रहने के बजाय पहले से ही इन कोर्स में भी अप्लाई कर देना चाहिए, ताकि उन्हें सीट न मिलने का ख़तरा न रहे."
कौन-कौन से कोर्स?

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ये पूछने पर कि कौन से पैरामेडिकल कोर्स ऐसे हैं, जो स्टूडेंट को अच्छा करियर दे सकते हैं, डॉक्टर अमित त्रिपाठी ने ये सलाह दी.
* B.Sc नर्सिंग: ये दुनिया का सबसे स्टेबल हेल्थकेयर करियर माना जाता है. आईसीयू, एनआईसीयू, ऑपरेशन थिएटर, इमरजेंसी हालात में इनकी सबसे ज़्यादा मांग होती है. साथ ही विदेश में नौकरी का भी ये बड़ा मौका देता है. इसमें दाखिले के लिए स्टेट/कॉलेज लेवल की प्रवेश परीक्षाएं देनी होती हैं. कुछ मामलों में मेरिट के आधार पर दाखिले होते हैं. शुरुआती सैलरी 25 हज़ार से लेकर 40 हज़ार के बीच हो सकती है. अनुभव के साथ यह एक लाख रुपए भी जा सकती है.
* BPT यानी बैचलर ऑफ़ फ़िज़ियोथेरेपी: खेल, न्यूरो, ऑर्थो के क्षेत्र में फ़िज़ियोथेरेपिस्ट की मांग तेज़ी से बढ़ रही है. इसमें दाख़िले के लिए राज्य स्तर पर अलग-अलग प्रवेश परीक्षाएं होती हैं. कहीं-कहीं सीयूईटी या नीट के स्कोर भी ज़रूरी होते हैं. फ़िज़ियोथेरेपिस्ट अलग-अलग अस्पतालों-क्लीनिक में जॉब कर सकते हैं या अपनी अलग प्रैक्टिस का रास्ता भी चुन सकते हैं.
* BMLT यानी बैचलर ऑफ़ मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी: पैथोलॉजी, आईवीएफ़, अस्पतालों में इनकी भारी मांग होती है. ख़ासकर कोरोना के दौर के बाद इनकी डिमांड में काफ़ी इज़ाफ़ा देखने को मिला है. इस कोर्स में दाख़िला मेरिट के आधार पर होता है या फिर संबंधित कॉलेज/यूनिवर्सिटी का एग्ज़ाम देना होता है.
* B.Sc रेडियोलॉजी/इमेजिंग: सीटी स्कैन, एमआरआई, एक्स-रे के लिए जिन टेक्निशियन की ज़रूरत होती है, ये वही हैं. इसमें भी सैलरी 60 हज़ार से एक लाख के बीच हो सकती है. निर्भर करता है कि अनुभव कितना है. दाख़िला मेरिट या कॉलेज एंट्रेंस के आधार पर होता है.
* बैचलर्स इन फ़ार्मेसी: दवा उद्योग को भारत का तीसरा सबसे बड़ा सेक्टर बताते हुए अमित त्रिपाठी कहते हैं कि ये चार साल का कोर्स, दवाओं की दुनिया में ले जाता है. मसलन, वे कैसे बनाई जाती हैं और वे किन लोगों की कैसे मदद करती है. शुरुआती सैलरी 20 से 35 हज़ार के बीच हो सकती है, जो अनुभव बढ़ने के साथ ही बढ़ती जाती है. इसके लिए राज्य स्तर की प्रवेश परीक्षा देनी होती है या फिर मेरिट के आधार पर दाखिला होता है.
* बैचलर ऑफ़ वोकेशन: ये कम फ़ीस देकर जल्दी नौकरी पाने का रास्ता है. रेडियोलॉजी, ऑपरेशन थिएटर, डायलिसिस, इमरजेंसी केयर में इन प्रोफ़ेशनल की ज़रूरत होती है. हालांकि, इसकी स्वीकार्यता नर्सिंग या फ़िज़ियोथेरेपी जितनी नहीं है. इसमें सीधा मेरिट से ही दाख़िला मिल सकता है.
* कॉस्मेटोलॉजी, एस्थेटिक मेडिसिन: ये आज का तेज़ी से बढ़ता क्षेत्र है. त्वचा, बाल, एंटी-एजिंग, लेज़र ट्रीटमेंट, बोटॉक्स, फ़िलर्स जैसे उपचारों की मांग भारत में भी तेज़ी से बढ़ी है. शहर-शहर इसके क्लीनिक खुल रहे हैं. हालांकि, इसमें एमबीबीएस करने वालों को तरज़ीह होती है, लेकिन बिना एमबीबीएस किए भी डिप्लोमा या सर्टिफ़िकेट कोर्स किए जा सकते हैं.
इनके अलावा बीएएमएस (आयुर्वेद), बीएचएमएस (होम्योपैथी), बीएनवाईएस (न्यूरोपैथी और योग साइंस), बीयूएमएस (यूनानी) भी वैकल्पिक कोर्स हो सकते हैं.

नलिन सलूजा कहते हैं कि नर्सिंग के लिए कई राज्य अलग-अलग एंट्रेंस एग्ज़ाम करवाते हैं. जैसे राजस्थान में RUHS, उत्तर प्रदेश में UP CNET, पश्चिम बंगाल में JENPAS UG वगैरह. इसके अलावा कुछ शीर्ष संस्थान अलग से अपनी प्रवेश परीक्षाएं लेते हैं. जैसे एम्स बीएससी नर्सिंग ऑनर्स में दाखिले के लिए अलग एंट्रेंस लेता है.
इसी तरह फ़िज़ियोथैरेपी के लिए भी बिहार कम्बाइंड एंट्रेंस कॉम्पीटिटीव एग्ज़ामिनेशन (BCECE), कम्बाइंड पैरामेडिकल, नर्सिंग एंड फार्मेसी एंट्रेंस टेस्ट (CPNET) जैसी परीक्षाएं होती हैं. हालांकि, इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के आईपीयू सीईटी के जैसे ही कई यूनिवर्सिटी अलग से एंट्रेंस लेती हैं.
आगे बढ़ने से पहले किन बातों का ध्यान रखें?

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ज़ेहन में सवाल आ सकता है कि कौन सा कोर्स, किस स्टूडेंट के लिए सही होगा, ये कैसे तय करें. तो इसके जवाब में अमित वर्मा कहते हैं कि कोर्स चुनते समय कुछ बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी है.
- सबसे पहले कोर्स स्टूडेंट की दिलचस्पी के मुताबिक होना चाहिए. मतलब कि किसी को मरीज़ों की देखभाल पसंद है, लैब का काम पसंद हैं, मशीनों में रुचि है या फिर रिसर्च में.
- इसके बाद ये देखें कि जो कोर्स आप चुन रहे हैं, उसमें नौकरियों की संभावनाएं कितनी हैं.
- कोर्स की वैलिडिटी या उसकी रेपुटेशन कैसी है. जो कॉलेज आप चुन रहे हैं, वो यूजीसी-एआईसीटीई या संबंधित संस्थान से मान्यता प्राप्त है या नहीं.
- ये भी गौर करें कि क्या कॉलेज किसी अस्पताल में इंटर्नशिप की सुविधा देता है या नहीं.
- कॉलेज का प्लेसमेंट रिकॉर्ड भी ज़रूर देखें.
- फ़ीस कितनी है और कितने समय का कोर्स है, ये भी पता करें.
मेडिकल फ़ील्ड का ही कोर्स करने के बाद कोई कहां-कहां काम कर सकते हैं, जानकार इसके जवाब में कहते हैं.
- सरकारी या प्राइवेट, दोनों ही तरह के अस्पतालों में काम मिल सकता है
- डायग्नोस्टिक लैब में अच्छी नौकरी मिल सकती है
- रिहैबिलिटेशन सेंटरों में स्टूडेंट को करियर बनाने का मौका मिल सकता है
- नर्सिंग होम और प्राइवेट क्लीनिक में रोज़गार भी एक विकल्प है.
बीबीसी हिन्दी के लिए कलेक्टिवन्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.