भास्कर न्यूज | ब्यावर आध्यात्म नगरी ब्यावर की धर्मधरा पर प्राचीन बांकेबिहारी मंदिर प्रांगण में भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। मधुर कार्ष्णि पीठाधीश्वर स्वामी जगदानन्दजी महाराज के शिष्य भागवत मर्मज्ञ स्वामी रजनीशानंद महाराज ने कथा वाचन कर रहे है। रविवार को आयोजित कथा के दौरान कृष्ण सुदामा के मिलन का वाचन किया गया। स्वामी रजनीशानंद महाराज ने कहा कि ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण शास्त्रों एवं वेदों के तीन बार अध्ययन पश्चात यह निष्कर्ष निकाला कि मानव मात्र को अपना चित प्रभु चरणों मे लगाना चाहिए। मानव जीवन को हरी सत्संग, नाम जप में लगाना चाहिये ना कि तामसिक प्रवर्तियो एवं विषय भोगों में। जीवन मे एक पल का भी भरोसा नही तो फिर व्यर्थ भुलावा क्यो करना। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा कि लाचार सुदामा पत्नी सुशीला के आग्रह करने पर अपने बचपन के मित्र द्वारिकाधीश से मिलने चल पड़ते है, अत्यंत दीनहीन सुदामा जिनकी एक एक अस्थि जीर्णशीर्ण शरीर से दिखती है अत्यंत लज्जा के साथ चलते चलते थक गये, सुदामा की करुण पुकार ठाकुरजी तक पहुँची, व्याकुल भगवान द्वारिकाधीश स्वयं मिलने को आतुर हो जाते है, रुक्मणि कहती है सुदामा के दर्शन सब करेंगें, तो सुदामा को द्वारिका नगरी बुलाया जाता है। बंसी वाले बतला तेरा कहा ठिकाना रे.. सुदामा के पूछने पर द्वारपालों ने रोक दिया, सुदामाजी ने कहा बस इतनी तमन्ना है, घनश्याम तुझे देखू... द्वारपाल ने भगवान से कहा प्रभु आपके द्वार पर ना सर पर है पगड़ी ना तन पर है जामा वो आपका बचपन का मित्र कहता है, अपना नाम सुदामा बताता है, सुदामा का नाम सुनते ही द्वारिकाधीश दौड़ पड़ते है, ह्रदय से लगाते है, ऐसे दीनबंधु भगवान ने रोते रोते गले से लगाया। सुदामा को लेकर भगवान अंतःपुर लेकर आते है ओर स्वयं के सिंहासन पर विराजमान करवा, गंगाजल से चरण प्रक्षालन करना चाहा लेकिन ठाकुरजी के नेत्रों से अश्रु बह निकले। उसी अश्रु जल से पांव धोये। भोजन करवाया, सुदामा ने ठाकुरजी को आशीर्वाद दिया। भगवान कृष्ण ने विश्वकर्मा को आदेश दिया कि सुदामा पुरी को द्वारिका नगरी सा बनाने का आदेश दिया। इस अवसर पर कथा स्थल पर द्वारिकानाथ भगवान सहित सुदामा की सजीव झांकी सजाई गई। इस दौरान यजमान पुखराज, जगदीश सोलीवाल, सत्यनारायण सोनी, अजय सोनी परिवार ने व्यासपीठ का पूजन करवाया।
.
आध्यात्म नगरी ब्यावर की धर्मधरा पर प्राचीन बांकेबिहारी मंदिर प्रांगण में भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। मधुर कार्ष्णि पीठाधीश्वर स्वामी जगदानन्दजी महाराज के शिष्य भागवत मर्मज्ञ स्वामी रजनीशानंद महाराज ने कथा वाचन कर रहे है। रविवार को आयोजित कथा के दौरान कृष्ण सुदामा के मिलन का वाचन किया गया। स्वामी रजनीशानंद महाराज ने कहा कि ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण शास्त्रों एवं वेदों के तीन बार अध्ययन पश्चात यह निष्कर्ष निकाला कि मानव मात्र को अपना चित प्रभु चरणों मे लगाना चाहिए।
मानव जीवन को हरी सत्संग, नाम जप में लगाना चाहिये ना कि तामसिक प्रवर्तियो एवं विषय भोगों में। जीवन मे एक पल का भी भरोसा नही तो फिर व्यर्थ भुलावा क्यो करना। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा कि लाचार सुदामा पत्नी सुशीला के आग्रह करने पर अपने बचपन के मित्र द्वारिकाधीश से मिलने चल पड़ते है, अत्यंत दीनहीन सुदामा जिनकी एक एक अस्थि जीर्णशीर्ण शरीर से दिखती है अत्यंत लज्जा के साथ चलते चलते थक गये, सुदामा की करुण पुकार ठाकुरजी तक पहुँची, व्याकुल भगवान द्वारिकाधीश स्वयं मिलने को आतुर हो जाते है, रुक्मणि कहती है सुदामा के दर्शन सब करेंगें, तो सुदामा को द्वारिका नगरी बुलाया जाता है।
बंसी वाले बतला तेरा कहा ठिकाना रे.. सुदामा के पूछने पर द्वारपालों ने रोक दिया, सुदामाजी ने कहा बस इतनी तमन्ना है, घनश्याम तुझे देखू... द्वारपाल ने भगवान से कहा प्रभु आपके द्वार पर ना सर पर है पगड़ी ना तन पर है जामा वो आपका बचपन का मित्र कहता है, अपना नाम सुदामा बताता है, सुदामा का नाम सुनते ही द्वारिकाधीश दौड़ पड़ते है, ह्रदय से लगाते है, ऐसे दीनबंधु भगवान ने रोते रोते गले से लगाया। सुदामा को लेकर भगवान अंतःपुर लेकर आते है ओर स्वयं के सिंहासन पर विराजमान करवा, गंगाजल से चरण प्रक्षालन करना चाहा लेकिन ठाकुरजी के नेत्रों से अश्रु बह निकले। उसी अश्रु जल से पांव धोये। भोजन करवाया, सुदामा ने ठाकुरजी को आशीर्वाद दिया। भगवान कृष्ण ने विश्वकर्मा को आदेश दिया कि सुदामा पुरी को द्वारिका नगरी सा बनाने का आदेश दिया। इस अवसर पर कथा स्थल पर द्वारिकानाथ भगवान सहित सुदामा की सजीव झांकी सजाई गई। इस दौरान यजमान पुखराज, जगदीश सोलीवाल, सत्यनारायण सोनी, अजय सोनी परिवार ने व्यासपीठ का पूजन करवाया।