अरावली केस; सुप्रीम कोर्ट का अपने ऑर्डर पर स्टे:पहले 100 मीटर से छोटी पहाड़ियों पर खनन को मंजूरी दी थी, अब रोक लगाई
अरावली पर्वतमाला को लेकर उठे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही आदेश पर सोमवार को रोक लगा दी है। 20 नवंबर को जारी आदेश में 100 मीटर से छोटी पहाड़ियों पर खनन के आदेश दिए थे, अब 21 जनवरी 2026 तक खनन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी गठित की जाए। यह कमेटी मौजूदा विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विश्लेषण करेगी। इसके बाद संबंधित मुद्दों पर कोर्ट को सुझाव देगी। कोर्ट ने केंद्र और अरावली के चार राज्यों (राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा) को भी नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब मांगा है। आज (सोमवार) मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और एजी मसीह की वेकेशन बेंच ने अरावली केस की सुनवाई की। CJI सूर्यकांत ने निर्देश दिया है कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और उन पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई आगे की टिप्पणियां फिलहाल स्थगित (abeyance) रहेंगी। अदालत ने साफ किया कि अगली सुनवाई तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जाएगा। इन सिफारिशों में से एक में कहा गया है कि 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली पर्वतमाला माना जाए। सॉलिसिटर जनरल ने कहा- गलतफहमियां फैलाई जा रहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि इस मामले में अदालत के आदेशों, सरकार की भूमिका और पूरी प्रक्रिया को लेकर कई तरह की गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। इन्हीं भ्रमों को दूर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार भी किया था। कोर्ट ने कहा- अदालत की टिप्पणियों का गलत अर्थ निकाला जा रहा मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि अदालत की भी यही भावना है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर अदालत द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों को लेकर गलत अर्थ निकाले जा रहे हैं। CJI ने संकेत दिया कि इन गलत धारणाओं को दूर करने के लिए स्पष्टीकरण की जरूरत पड़ सकती है, ताकि अदालत की मंशा और निष्कर्षों को लेकर कोई भ्रम न रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट या अदालत के फैसले को लागू करने से पहले एक निष्पक्ष और स्वतंत्र मूल्यांकन जरूरी है, ताकि कई अहम सवालों पर स्पष्ट दिशा मिल सके। CJI ने कहा कि अदालत पहले ही यह संकेत दे चुकी है कि इन सवालों पर गहराई से विचार आवश्यक है। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्ताव रखा है कि एक्सपट्र्स की एक हाई पावर्ड कमेटी गठित की जाए। यह कमेटी मौजूदा विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विश्लेषण करे और इन मुद्दों पर स्पष्ट सुझाव दे। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की वैकेशन बेंच में मामले की सुनवाई चल रही है। जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली मानने की नई परिभाषा का विरोध हो रहा है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। सीजेआई के वैकेशन कोर्ट में यह मामला पांचवें नंबर पर लिस्टेड था। अशोक गहलोत बोले- मंत्री जनता की इच्छा क्यों नहीं समझ पा रहे कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा- हमें बहुत खुशी है कि सर्वोच्च न्यायालय ने आज स्थगन आदेश जारी किया है। हम इसका स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि सरकार भी जनता की इच्छा को समझेगी। चारों राज्यों की जनता, और वास्तव में पूरे देश की जनता, इस आंदोलन में शामिल हुई है। सड़कों पर उतरी है। विभिन्न रूपों में विरोध प्रदर्शन किया है। यह समझ से परे है कि मंत्री (पर्यावरण मंत्री) इसे क्यों नहीं समझ पा रहे हैं। पूरी खबर पढ़ें कांग्रेस ने वन-पर्यावरण मंत्री से इस्तीफा मांगा कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा- इस मामले का और अधिक विस्तार से अध्ययन करने की आवश्यकता है। और याद दिलाया कि प्रस्तावित पुनर्परिभाषा का भारतीय वन सर्वेक्षण, सर्वोच्च न्यायालय की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति और स्वयं एमिकस क्यूरी ने विरोध किया था। रमेश ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री के तत्काल इस्तीफे की मांग की। साथ ही कहा- यह फैसला पुनर्परिभाषा के पक्ष में उनके द्वारा दिए गए सभी तर्कों को खारिज करता है। आरपी बलवान की याचिका पर केंद्र, राज्यों को नोटिस हरियाणा के वन विभाग के रिटायर अधिकारी आरपी बलवान ने भी पिछले सप्ताह केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पहले से चल रहे गोदावर्मन मामले में याचिका दाखिल की, जिस पर कोर्ट ने केंद्र, राजस्थान, हरियाणा सरकार और पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट शीतकालीन अवकाश के बाद इस मामले में सुनवाई करेगा। विवाद के बाद केंद्र ने अरावली रेंज में नए खनन पट्टों पर लगाई रोक विवाद बढ़ने पर केंद्र सरकार ने अरावली में नए खनन पट्टों पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए। 24 दिसंबर (बुधवार) को केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बयान में कहा कि पूरी अरावली श्रृंखला में कोई नया खनन लीज नहीं जारी होगा। केंद्र ने राज्य सरकारों को अरावली में किसी भी प्रकार के नए खनन पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए हैं। ये प्रतिबंध पूरे अरावली पर समान रूप से लागू होंगे। केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से जारी लिखित बयान के मुताबिक इस आदेश का मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली सतत भूवैज्ञानिक श्रृंखला के रूप में अरावली की रक्षा करना और सभी अनियमित खनन गतिविधियों को रोकना है। केंद्र के बयान के बाद पूर्व सीएम अशोक गहलोत, जयराम रमेश सहित विपक्षी नेताओं ने कहा कि इसमें कुछ भी नया नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह सब है, उसी का पालन करना है। --- अरावली पर्वतमाला से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए... पीली हो जाएगी गुलाबी नगरी, बिना झीलों का उदयपुर:दिनभर धूल के तूफान, बिना मास्क सांस नहीं, AI से देखिए अरावली खत्म होने के खतरे राजस्थान से अरावली की पहाड़ियां खत्म हो गईं तो यहीं मजाक डरावनी हकीकत बनकर सामने आ सकता है। अरावली खत्म होने की बात हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि एक नई परिभाषा के अनुसार 100 मीटर से ऊंची पहाड़ी को ही अरावली माना जाएगा। (पूरी खबर पढ़ें) अरावली न हो तो पाकिस्तान में बरसेगा राजस्थान का मानसून:1.50 लाख से ज्यादा पहाड़ियों पर खनन का खतरा, अब तक 25% चोटियां खत्म, पार्ट-2 सुप्रीम कोर्ट ने वन पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए अरावली की पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी दे दी है। इसके अनुसार दिल्ली से राजस्थान और गुजरात तक 700 किमी में फैली पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंची हैं तो उन्हें अरावली में नहीं गिनेंगे। (पूरी खबर पढ़ें)