एसएमएस-स्टेट कैंसर संस्थान में 13 साल में 160 ट्रांसप्लांट:सुधरती सेहत; हाफ-मैच बोन मेरो ट्रांसप्लांट से 100 दिन बाद महिला को मिला नया जीवन
ब्लड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का दर्द झेल रही सीकर निवासी 40 वर्षीय महिला काे हॉफ-मैच बोनमेरो ट्रांसप्लांट के जरिए 100 दिन बाद नया जीवन मिला है। महिला एक्यूट मायलाइड ल्यूकेमिया बीमारी से पीड़ित थी। डॉक्टरों के अनुसार पूरी तरह से मैच डोनर उपलब्ध नहीं होने के कारण हेप्लो आइडेंटिकल या हॉफ -मैच ट्रांसप्लांट (50% मैच डोनर से) का निर्णय लिया। मरीज आज स्वस्थ जीवन जी रही है। मेडिकल ओंकोलॉजी विभाग (एसएमएस एवं स्टेट कैंसर संस्थान) में 13 साल में 160 बोन मेरो ट्रांसप्लांट हो चुके हैं, जिसकी सफलता की दर 90 फीसदी है। पहला बीएमटी वर्ष 2009 में हुआ था। "स्टेट कैंसर संस्थान में 25 करोड़ रुपए लागत की बोन मेरो ट्रांसप्लांट यूनिट के भवन का निर्माण जारी है। नए साल में मरीजों को विश्व स्तरीय इलाज की सुविधा मिलने लगेगी।" - डॉ. दीपक माहेश्वरी, प्राचार्य, एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर भास्कर एक्सप्लेनर
ब्लड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का दर्द झेल रही सीकर निवासी 40 वर्षीय महिला काे हॉफ-मैच बोनमेरो ट्रांसप्लांट के जरिए 100 दिन बाद नया जीवन मिला है। महिला एक्यूट मायलाइड ल्यूकेमिया बीमारी से पीड़ित थी। डॉक्टरों के अनुसार पूरी तरह से मैच डोनर उपलब्ध नहीं
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"स्टेट कैंसर संस्थान में 25 करोड़ रुपए लागत की बोन मेरो ट्रांसप्लांट यूनिट के भवन का निर्माण जारी है। नए साल में मरीजों को विश्व स्तरीय इलाज की सुविधा मिलने लगेगी।" - डॉ. दीपक माहेश्वरी, प्राचार्य, एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर
भास्कर एक्सप्लेनर
- हेप्लो आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट ने उन मरीजों के लिए इलाज का रास्ता खोल दिया है, जिनके लिए पूरी तरह से मैच डोनर उपलब्ध नहीं होता। इसमें माता-पिता, भाई-बहन या संतान जैसे 50 फीसदी मैच डोनर से ट्रांसप्लांट करना आसान है।
- एक्यूट मायलाइड ल्यूकेमिया, एप्लास्टिक एनीमिया, थैलेसीमिया, ल्यूकेमिया जैसी ब्लड से संबधित गंभीर बीमारियों के इलाज में हॉफ-मैच बोन मेरो ट्रांसप्लांट तकनीक एक मील का पत्थर साबित हो रही है।
- दवाओं, इम्यूूनोसप्रेशन और संक्रमण रोकने के प्रोटोकॉल के कारण परिणाम पूर्ण मैच ट्रांसप्लांट के समान हो गए हैं, जिसमें उच्च तकनीकी दक्षता, अनुभवी डॉक्टरों की टीम होनी चाहिए।
- ऑटोलोगस, एलोजेनिक ( फुल एवं हॉफ-मैच) तकनीक से ब्लड कैंसर, मल्टीपल मायलोमा, नॉन हुजकिंग लिम्फोमा, मायलोमा, थैलेसीमिया, एप्लास्टिक एनीमिया आदि बीमारियों का इलाज होता है।
- निजी अस्पतालों में तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट पर 40 से 50 लाख रुपए का खर्चा पड़ता है। जबकि विदेश में 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। जबकि एससीआई में निशुल्क इलाज मिल रहा है।