लैब असिस्टेंट भर्ती-2018, अभ्यर्थी को 7 साल बाद मिलेगी नियुक्ति:हाईकोर्ट ने 2 महीने में पोस्टिंग के दिए आदेश, कटऑफ से ज्यादा मार्क्स आए थे
राजस्थान हाईकोर्ट ने लैब असिस्टेंट भर्ती-2018 में एक अभ्यर्थी को बड़ी राहत देते हुए विभाग की हठधर्मिता पर अंकुश लगाया है। जस्टिस रेखा बोराणा की एकलपीठ ने जोधपुर के ओसियां निवासी करणी सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिए हैं कि वे अभ्यर्थी के अनुभव प्रमाण पत्र को मान्य करें। साथ ही, 2 महीने के भीतर उसे नियुक्ति प्रदान करें। मामले में दिलचस्प पहलू यह है कि अभ्यर्थी को अपने अनुभव प्रमाण पत्र को सही प्रारूप में बनवाने और उसे मान्य करवाने के लिए पिछले 7 साल में तीन बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। फॉर्मेट के फेर में फंसा भविष्य याचिकाकर्ता करणी सिंह ने लैब असिस्टेंट भर्ती-2013 और फिर 2018 में आवेदन किया था। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने आया कि 2013 की भर्ती में उनका अनुभव प्रमाण पत्र (1 अप्रैल 2011 से 31 मार्च 2012 तक का) निर्धारित फॉर्मेट में नहीं होने के कारण खारिज कर दिया गया था। तब 2017 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें सही फॉर्मेट में सर्टिफिकेट मिला। जब 2018 में नई भर्ती आई, तो विभाग ने फिर से सर्टिफिकेट का फॉर्मेट बदल दिया। अभ्यर्थी के पास 2013 से 2016 तक का नया अनुभव तो सही फॉर्मेट में था, लेकिन 2011-12 वाला पुराना अनुभव नए फॉर्मेट में नहीं था। कटऑफ से ज्यादा अंक, फिर भी नियुक्ति नहीं याचिकाकर्ता के वकील यशपाल खिलेरी ने तर्क दिया कि वर्ष 2018 में हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद विभाग ने 13 सितंबर 2018 को प्रोविजनल सर्टिफिकेट जारी तो किया, लेकिन उसे यह कहकर खारिज कर दिया कि यह आवेदन की अंतिम तारीख (30 जून 2018) के बाद जारी हुआ है। एडवोकेट खिलेरी ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने भर्ती में 50.472 अंक (बोनस सहित) प्राप्त किए हैं, जबकि सामान्य वर्ग की कटऑफ 46.483 अंक ही है। मेरिट में होने के बावजूद केवल सर्टिफिकेट की तारीख का बहाना बनाकर रिजल्ट रोक दिया गया। कोर्ट: विभाग की गलती की सजा अभ्यर्थी को नहीं जस्टिस रेखा बोराणा ने मामले की सुनवाई करते हुए विभाग के रवैये को गलत ठहराया। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि जब अनुभव की अवधि पर कोई विवाद नहीं है, तो केवल इस आधार पर सर्टिफिकेट खारिज करना अवैध है कि वह अंतिम तारीख के बाद जारी हुआ। कोर्ट ने कहा, "प्रमाण पत्र पहले सही प्रारूप में जारी नहीं किया गया था और कोर्ट के आदेश के बाद ही जारी हुआ। इसलिए, कटऑफ तारीख के बाद जारी प्रमाण पत्र पर विचार किया जाना चाहिए था।" 2 माह में नियुक्ति और नोशनल परिलाभ कोर्ट ने दोनों याचिकाओं (2018 और 2022) को स्वीकार करते हुए विभाग को आदेश दिया: वकील का पक्ष: "विभाग की संवेदनहीनता और कनिष्ठों को नियुक्ति" याचिकाकर्ता के अधिवक्ता यशपाल खिलेरी के अनुसार यह केस चिकित्सा विभाग की संवेदनहीनता और उत्पीड़न का जीता-जागता उदाहरण है। उन्होंने बताया कि विभाग की हठधर्मिता के कारण एक ही अनुभव अवधि को मान्य करवाने के लिए आशार्थी को एक अवमानना याचिका सहित कुल चार बार हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। उन्होंने कहा कि विभाग ने करणीसिंह को तकनीकी पेच में उलझाए रखा गया, वहीं उससे कम मेरिट वाले कनिष्ठ अभ्यर्थियों को 5 अगस्त 2022 को ही नियमित नियुक्तियां दे दी गई थीं। लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार कोर्ट ने राहत भरा फैसला दिया हे।