साल 2025: पाकिस्तान के लिए पिछले एक दशक का सबसे अधिक ख़ून-ख़राबे वाला साल
पूरे पाकिस्तान में चरमपंथी हमलों में तेज़ी देखी जा रही है. ये हमले अब ऐसी जगहों पर होने लगे हैं, जो हाई-सिक्योरिटी से लैस और सुरक्षित माने जा रहे थे.

इमेज कैप्शन, एडवोकेट असलम ग़ुम्मान के बेटे की मौत इस्लामाबाद के एक न्यायिक परिसर में हुए एक चरमपंथी हमले में हुई
-
- Author, फ़रहत जावेद
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद से
- 2 घंटे पहले
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के बाहर रोज़मर्रा की क़ानूनी ज़िंदगी की रफ़्तार आमतौर पर जैसी रहती है, वैसी ही दिखती है.
वकील और उनके मुवक्किल सुरक्षा बैरियरों के पास से तेज़ी से गुज़रते हैं, क्लर्क फ़ाइलों के बंडल उठाए चलते हैं और कैफ़ेटेरिया का स्टाफ़ दोपहर के खाने की भीड़ के इंतज़ार में खड़ा रहता है.
लेकिन एडवोकेट असलम ग़ुम्मान के लिए यहां ज़िंदगी जैसे थम सी गई है.
वह अपने मोबाइल फ़ोन पर तस्वीरें देखते रहते हैं. ये उनके बेटे ज़ुबैर ग़ुम्मान की तस्वीरें हैं.
ज़ुबैर पिछले 12 साल से इस्लामाबाद में वकालत कर रहे थे और हाल ही में उन्हें अपने पिता की तरह सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की अनुमति मिली थी.
लेकिन कुछ हफ़्ते पहले, नवंबर में इस्लामाबाद के न्यायिक परिसर में हुए एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
"सब कुछ बदल गया है", यह कहते हुए असलम ग़ुम्मान की आवाज़ भर आती है. वह आगे कहते हैं, "ऐसा लगता है जैसे एक बच्चे को खोने से मेरी पूरी ज़िंदगी बदल गई है."
इस साल, पाकिस्तान के एक हज़ार से ज़्यादा परिवारों की तरह ग़ुम्मान परिवार भी ऐसी जंग में पिस गया, जिसका वह कभी हिस्सा नहीं थे. चरमपंथी हिंसा में तेज़ उछाल ने 2025 को पिछले एक दशक से भी ज़्यादा समय में पाकिस्तान का सबसे ख़ून-ख़राबे वाला साल बना दिया है.
एक ऐसा दिन जिसकी शुरुआत किसी दूसरे दिन जैसे ही हुई

इमेज कैप्शन, असलम ग़ुम्मान का कहना है कि उनका बेटा बुढ़ापे में उनकी उम्मीद था
असलम ग़ुम्मान कहते हैं कि जब उन्होंने टीवी स्क्रीन पर धमाके की ख़बर देखी, तो उन्होंने अपने बेटे को फ़ोन करने की कोशिश की.
जिस न्यायिक परिसर को बाद में निशाना बनाया गया, वहां ज़ुबैर का कोई केस नहीं था.
असलम ग़ुम्मान कहते हैं, "वह इस्लामाबाद के जी-10 सेक्टर में एक फ़ैमिली कोर्ट में थे. वहां अपना केस ख़त्म करने के बाद वह अपने ड्राइवर के साथ बाहर निकले."
ज़ुबैर के पिता के मुताबिक़, उसी वक़्त एक बुज़ुर्ग आदमी ज़ुबैर के पास आया. उन्होंने बताया कि वे ग़रीब हैं, उन्हें ग़लत जगह छोड़ दिया गया है और उन्हें जी-11 सेक्टर में स्थित न्यायिक परिसर का रास्ता जानना है.
असलम ग़ुम्मान याद करते हैं, "मेरे बेटे ने उन्हें अपनी कार में बिठाया और कहा कि वह उन्हें वहां छोड़ देगा." परिसर के पास पहुंचकर ड्राइवर ने कार रोक दी. ज़ुबैर उस परिवार को गेट तक छोड़ने गए और फिर वापस मुड़ गए.
कुछ ही पलों बाद, उस इलाक़े में एक आत्मघाती हमलावर ने ख़ुद को उड़ा लिया. धमाके में 12 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों ज़ख़्मी हुए.
बढ़ती हिंसा से भरा एक साल
ज़ुबैर ग़ुम्मान उन एक हज़ार से ज़्यादा आम नागरिकों में शामिल हैं, जो 2025 में पाकिस्तान में हुए चरमपंथी हमलों में मारे गए.
बीबीसी ने आधिकारिक आंकड़ों और साउथ एशिया टेररिज़्म पोर्टल जैसे स्वतंत्र निगरानी समूहों के ज़रिए जो डेटा हासिल किया है, उसके मुताबिक़ साल 2025 में 5 दिसंबर तक पाकिस्तान में कम से कम 3,800 लोगों की मौत हो चुकी थी. यह 2024 के मुक़ाबले क़रीब 70 फ़ीसदी ज़्यादा है.
डेटा यह भी दिखाता है कि जिन जगहों पर ये मौतें हो रही हैं, उसमें बदलाव आया है.
2024 में ज़्यादातर मौतें चरमपंथी हमलों की वजह से हुई थीं. उस साल 754 सुरक्षा कर्मी मारे गए, जबकि क़रीब 900 चरमपंथी या तो हमलों में मारे गए या फिर आतंकवाद-रोधी अभियानों में.
लेकिन 2025 में कुल मौतों में आधे से ज़्यादा वे चरमपंथी शामिल थे जो सुरक्षा अभियानों के दौरान मारे गए. आंकड़ों के मुताबिक़ इस दौरान 2,000 से ज़्यादा चरमपंथी मारे गए, जबकि मारे गए सुरक्षा कर्मियों की संख्या 1,200 से कम रही.
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फ़ॉर कॉन्फ़्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, 2025 में संघर्ष से जुड़ी मौतों में तेज़ी देखी गई. यह साल एक दशक में आम नागरिकों के लिए सबसे ख़ून-ख़राबे वाला साल रहा.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चरमपंथी हमले 2014 के बाद अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए. साथ ही आत्मघाती धमाकों और छोटे ड्रोन के इस्तेमाल में बढ़ोतरी देखी गई.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, इस साल देशभर में 67,000 से ज़्यादा इंटेलिजेंस पर आधारित ऑपरेशन चलाए गए. सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि यह सशस्त्र समूहों के ख़िलाफ़ एक बड़े पैमाने पर और ज़्यादा सख़्त अभियान को दिखाता है.
विश्लेषकों के मुताबिक़, इससे यह भी पता चलता है कि चरमपंथ एक बार फिर कितनी अधिक गहराई तक जड़ें जमा चुका है.

इमेज स्रोत, Getty Images
इमेज कैप्शन, चरमपंथियों ने पाकिस्तान के उन शहरी इलाकों को निशाना बनाया है जिन्हें पहले अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता था
इस साल की हिंसा की एक और चौंकाने वाली बात यह है कि ये हमले किन जगहों पर हो रहे हैं.
आत्मघाती धमाकों से लेकर टार्गेट किलिंग तक, चरमपंथियों ने अपनी पहुंच और अपने टारगेट्स दोनों का विस्तार किया है. चरमपंथियों ने उन जगहों पर हमले किए हैं, जिन्हें पहले अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता था.
पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में चरमपंथी हिंसा ज़्यादातर सीमावर्ती इलाक़ों और दूरदराज़ के इलाक़ों में होती रही है, ख़ासकर उत्तर-पश्चिमी प्रांत ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों में. लेकिन 2025 में चरमपंथियों ने आगे बढ़ते हुए शहरों और हाई-सिक्योरिटी वाले ठिकानों को निशाना बनाया है.
नवंबर में इस्लामाबाद के न्यायिक परिसर पर हुआ आत्मघाती हमला ऐसा ही एक मामला था, जिसमें एक दर्जन से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई. इसे देश के सबसे सुरक्षित शहरों में से एक माना जाता है.
सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि ख़तरे का स्वरूप अब बदल गया है.
पाकिस्तान में स्थित सुरक्षा विश्लेषक इफ़्तिख़ार फ़िरदौस चरमपंथी समूहों की तरफ़ से इस्तेमाल किए जा रहे हथियारों की बदलती प्रकृति की ओर इशारा करते हैं.
वह कहते हैं, "2021 के बाद हमने अमेरिकी और नेटो हथियारों को चलन में आते देखा. लेकिन अब हम ऐसे सिस्टम्स देख रहे हैं जो पहले शायद ही कभी विद्रोही समूहों के पास होते थे."
उनके मुताबिक़, एक बड़ा कारण हमलों में क्वाडकॉप्टर का बढ़ता इस्तेमाल है. बलूचिस्तान में चरमपंथियों ने ऐसे इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस भी तैनात किए हैं, जो सुरक्षा बलों के जैमिंग सिस्टम की फ़्रीक्वेंसी को टैप करने में सक्षम हैं.
फ़िरदौस कहते हैं, "इसके कारण ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है. ज़्यादा अधिकारी और सैनिक मारे जा रहे हैं, क्योंकि ये डिवाइस पारंपरिक जवाबी उपायों को बेअसर कर देते हैं."

इमेज स्रोत, Getty Images
इमेज कैप्शन, नवंबर में चरमपंथियों ने दक्षिण वज़ीरिस्तान में एक कैडेट कॉलेज को निशाना बनाया
हिंसा को कौन भड़का रहा है?
पाकिस्तान किसी एक चरमपंथी ख़तरे का सामना नहीं कर रहा है, बल्कि ऐसे कई चरमपंथी ख़तरे हैं जिनका अलग-अलग मक़सद और तरीक़ा है. ये अलग-अलग इलाक़ों में काम कर रहे हैं.
इस साल हुए ज़्यादातर हमलों का कारण पाकिस्तानी तालिबान यानी टीटीपी को माना गया है. यह 2007 में बना एक संगठन है, जिसका मक़सद पाकिस्तान की सरकारी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना है और इस्लामी क़ानून के अपने वर्ज़न को लागू करना है.
हालांकि, अतीत में सैन्य अभियानों से यह समूह कमजोर हो गया था, लेकिन इसने धीरे-धीरे ख़ुद को फिर से संगठित कर लिया है.
सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि टीटीपी अब एक सख़्त सेंट्रल कमान की बजाय अलग-अलग गुटों के कमज़ोर नेटवर्क के ज़रिए काम करता है. इससे अलग-अलग गुट स्वतंत्र रूप से हमले की योजना बना सकते हैं और उन्हें अंजाम दे सकते है.
समूह का मेन फ़ोकस अब भी ख़ैबर पख़्तूनख़्वा है, जहां वह नियमित रूप से पुलिस थानों, सुरक्षा क़ाफ़िलों, ख़ुफ़िया कर्मियों और स्थानीय अधिकारियों को निशाना बनाता है.
इनमें से कई हमले कम लागत वाले होते हैं, लेकिन ये बार-बार होते हैं. इनका मक़सद सुरक्षा बलों पर दबाव बनाए रखना है.
वहीं, बलूचिस्तान में हिंसा का स्वरूप अलग है.
अलगाववादी समूह, जिनमें सबसे प्रमुख बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी है. ये सभी धार्मिक विचारधारा से कम और राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने, संसाधनों पर नियंत्रण और दशकों से चले आ रहे सरकारी दमन के आरोपों से अधिक प्रेरित हैं.
उनके हमले अक्सर सैन्य ठिकानों, चीन के समर्थन वाली बुनियादी ढांचों से जुड़ी परियोजनाओं, रेलवे लाइनों और ऊर्जा सुविधाओं को निशाना बनाते हैं.
इन हमलों में मारे जाने वालों की संख्या कभी-कभी कम होती है, लेकिन इनका रणनीतिक और आर्थिक असर काफ़ी बड़ा होता है.
पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट की क्षेत्रीय शाखा आईएस-ख़ुरासान के नाम से किए गए हमले भी देखे गए हैं. टीटीपी से छोटा होने के बावजूद इस समूह ने हाई-प्रोफ़ाइल हमले किए हैं, जिससे ख़तरे की जटिलता और बढ़ गई है.
विश्लेषकों का कहना है कि ये समूह अक्सर सहयोग करने की बजाय कंपीट करते हैं, लेकिन सभी को एक जैसे हालात से फ़ायदा मिलता है: राजनीतिक अस्थिरता, कमज़ोर बॉर्डर, आर्थिक मुश्किलें और क़ानून लागू करने में कमज़ोरियां.

इमेज स्रोत, Getty Images
इमेज कैप्शन, इस साल मार्च में अलगाववादी चरमपंथी समूह बीएलए ने बलूचिस्तान में एक यात्री ट्रेन पर हमला किया था
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि राजनीतिक विभाजन आतंकवाद-रोधी कोशिशों को कमज़ोर कर रही हैं, ख़ासकर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में. जहां इमरान ख़ान की पार्टी के नेतृत्व वाली प्रांतीय सरकार और सेना के बीच रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं.
फ़िरदौस कहते हैं, "ऐसे संघर्ष में लोगों का समर्थन बहुत अहम होता है और वह समर्थन राजनीति के ज़रिए आता है. लेकिन इस वक़्त प्रांत और संघीय अधिकारियों के बीच गहरी दरार है. दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हमले में लगे हैं और इससे चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई कमज़ोर पड़ रही है."
पाकिस्तान की सरकार ने बार-बार पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान पर आरोप लगाए हैं कि वह चरमपंथी समूहों को अपनी ज़मीन से काम करने देता है.
संघीय सूचना मंत्री अत्ता तरार कहते हैं कि इसमें साफ़ लिंक दिखते हैं.
वह कहते हैं, "यह बिल्कुल साफ़ है कि अफ़ग़ानिस्तान शामिल है. उसकी ज़मीन का इस्तेमाल हो रहा है और वहां पनाह लेने वाले लोग भी इसमें शामिल हैं. वहां उनकी एक वॉर इकॉनमी है और वे उसी पर फल-फूल रहे हैं."
अफ़ग़ानिस्तान इन आरोपों से इनकार करता रहा है. उसका कहना है कि अफ़ग़ान ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी देश के ख़िलाफ़ नहीं होता. अफ़ग़ान अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान की सुरक्षा चुनौतियां आंतरिक हैं और इसके लिए अफ़ग़ानिस्तान को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए.
इस विवाद ने पहले से ही नाज़ुक हालात में तनाव को और बढ़ा दिया है और ऐसे वक़्त में सहयोग को सीमित कर दिया है, जब तालमेल की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो सकती है.

इमेज स्रोत, Getty Images
इमेज कैप्शन, अक्तूबर में हुई झड़पों के बाद से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच की सीमा बंद है
'घर लौटने का कोई भरोसा नहीं'
ग़ुम्मान परिवार जैसे लोगों के लिए नीति, रणनीति और दोषारोपण पर होने वाली बहसें बहुत कम राहत देती हैं.
असलम ग़ुम्मान कहते हैं कि आम नागरिक एक ऐसे संघर्ष की क़ीमत चुका रहे हैं, जिसका कोई साफ़ अंत नज़र नहीं आता.
वह कहते हैं, "हर दिन इन हमलों में बेगुनाह और ग़रीब लोग मारे जाते हैं. आप सुबह घर से निकलते हैं और यह नहीं जानते कि लौट पाएंगे या नहीं."
वह थोड़ी देर के लिए रुकते हैं और फिर कहते हैं, "ऐसा लगता है जैसे हमें आतंकवाद की एक गहरी खाई में धकेल दिया गया है. बाहर निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता. जब तक पाकिस्तान के अफ़ग़ानिस्तान और भारत के साथ मसले हल नहीं होते, आम लोग और सुरक्षा कर्मी इस हिंसा का ईंधन बनते रहेंगे."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित