हिमालय का पानी बुझा सकता है राजस्थान की प्यास:‘ग्राउंड वॉटर स्ट्रैटजी समिट–2025’ में जल संकट से निपटने की ठोस कार्ययोजना पर हुआ मंथन, पढ़ें जयपुर की प्रमुख खबरें
देश और प्रदेश में लगातार गिरते भूजल स्तर, बढ़ते जल संकट और जल सुरक्षा को लेकर जयपुर के राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में शनिवार को ‘ग्राउंड वाटर स्ट्रैटजी समिट–2025’ का आयोजन किया गया। समिट में देशभर से आए जल विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं ने जल संरक्षण और प्रभावी वाटर मैनेजमेंट पर गंभीर चिंता जताई। समिट में वक्ताओं ने कहा कि हिमालय से बाढ़ के रूप में बहने वाले अपार जल को यदि वैज्ञानिक तरीके से संग्रहित कर राजस्थान जैसे जल-अभावग्रस्त राज्यों तक पहुंचाया जाए, तो जन-जन की प्यास बुझाई जा सकती है। इस दौरान यह भी सामने आया कि देश में कहीं भी समग्र और प्रभावी वाटर मैनेजमेंट की ठोस व्यवस्था नहीं है। समिट के आयोजक डॉ. एस.के. जैन ने बताया कि सम्मेलन में प्राप्त सुझावों और प्रस्तावों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर केंद्र और राज्य सरकार को सौंपी जाएगी, ताकि इस पर ठोस नीति और कार्ययोजना बनाई जा सके। उन्होंने कहा कि अतिरिक्त पानी को कम जल वाले क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए अब राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति बनाना जरूरी है। इंस्टीट्यूट ऑफ वाटर कंजर्वेशन (IWC) द्वारा आयोजित और GWMICC द्वारा प्रायोजित इस समिट का शुभारंभ हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एन.के. जैन ने किया। समिट में बताया गया कि राजस्थान में देश की लगभग 18 प्रतिशत आबादी निवास करती है, जबकि जल संसाधन केवल 4 प्रतिशत हैं। भूजल का लगातार हो रहा अंधाधुंध दोहन भविष्य के लिए गंभीर खतरा है। विशेषज्ञों ने कहा कि भूजल हमारी खेती और अर्थव्यवस्था की अदृश्य रीढ़ है। टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को जल संकट से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार बताते हुए वक्ताओं ने जोर दिया कि सिर्फ सरकार के भरोसे यह संकट नहीं टलेगा। इंडस्ट्री को सर्कुलर इकोनॉमी अपनाते हुए हर बूंद पानी का पुनर्चक्रण करना होगा, वहीं आमजन को “हर वर्षा-बूंद रिचार्ज” अभियान से जुड़ना पड़ेगा। समिट के कन्वीनर प्रो. हिमांशु जैन ने कहा कि राजस्थान को अब ‘संकट का शिकार’ नहीं, बल्कि ‘समाधान की प्रयोगशाला’ के रूप में विकसित किया जाएगा। सम्मेलन में यह भी बताया गया कि राज्य के अधिकांश जिले ‘ओवर-एक्सप्लॉइटेड’ श्रेणी में पहुंच चुके हैं, जहां भूजल स्तर हर साल कई मीटर नीचे जा रहा है। कीनोट एड्रेस भारत सरकार में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के पूर्व चेयरमैन डॉ. सुशील गुप्ता ने दिया। रोटरी इंटरनेशनल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रज्ञा मेहता स्पेशल गेस्ट रहीं, जबकि इंडियन हिमालयन रिवर बेसिन काउंसिल की चेयरपर्सन डॉ. इंदिरा खुराना गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में शामिल हुईं। समिट में कृषि क्षेत्र में भूजल के अत्यधिक उपयोग (करीब 80-90 प्रतिशत) पर भी चिंता जताई गई और चेतावनी दी गई कि यह भविष्य में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए ‘क्लाइमेट रेजिलिएंस’ विकसित करने पर जोर दिया, ताकि बाढ़ और सूखे दोनों परिस्थितियों में भूजल भंडार सुरक्षित रह सके। आगे पढ़ें जयपुर की अन्य खबरें...