राजस्थान की कविता ने आखिरी चांस में बाजी मारी:फटे जूतों के साथ क्रिकेट शुरू किया, ऑस्ट्रेलियाई बॉलर जैसा एक्शन, 3 बार फेल भी हुई
अपने खास बॉलिंग एक्शन से विकेट उड़ाने वाली कविता भील (14) अब राजस्थान की वुमन अंडर-15 टीम से खेलेगी। कविता भील करीब सालभर पहले तब चर्चा में आई थी जब उनका ऑस्ट्रेलियन बॉलर मिचेल स्टार्क जैसे एक्शन में बॉलिंग करते एक वीडियो सामने आया था। तब भास्कर टीम ने ब्यावर के छोटे से आदिवासी गांव खेड़ेला में कविता भील के घर पहुंचकर उनके संघर्ष की कहानी ऐप पर दिखाई थी। टीम जगह बनाने के लिए कविता को काफी संघर्ष करना पड़ा। फटे जूतों और गांव में कच्ची मिट्टी से तैयार ऊबड़ खाबड़ पिच पर दिन-रात प्रैक्टिस करती। बसों में सफर कर ट्रायल देने जयपुर आती। बीते साल टॉप-20 प्लेयर्स में जगह बनाई, लेकिन सिलेक्शन नहीं हुआ। कविता ने हार नहीं मानी। उन्हीं ऊबड़-खाबड़ पिचों पर प्रैक्टिस करते-करते यह मुकाम हासिल किया है। 30 दिसंबर को 16 खिलाड़ियों की टीम के साथ कविता वन डे ट्रॉफी एलीट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने कोलकाता के लिए रवाना हुई। उससे पहले जयपुर के SMS स्टेडियम स्थित RCA ग्राउंड पर भास्कर ने कविता और उनके कोच मनोज से खास बातचीत की। ‘बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद बाहर हुई, अब यही आखिरी मौका था’ कविता से मिलने हम सुबह 6 बजे आरसीए अकादमी पहुंचे। कविता के चेहरे पर सिलेक्शन की खुशी साफ दिखाई दे रही थी। कैसा महसूस हो रहा है? इस सवाल के जवाब में कविता बोली- इतनी मेहनत के बाद स्टेट लेवल पर खेलने का मौका मिल रहा है, बहुत खुश हूं। अंडर-15 के लिए यह मेरा आखिरी ट्रायल था। अगर इसमें सिलेक्शन नहीं होता तो देश के लिए खेलने की मेरी उम्मीद टूट जाती। इस बार पूरे कैंप के दौरान बॉलिंग अच्छी रही। बॉल की लेंथ ठीक थी.. लेकिन स्पीड मेंटेन की कोशिश में बॉल वाइड ज्यादा हो रही थी। मैंने कोच के साथ अपनी इस कमी पर खूब मेहनत की। मेरे साथ सिलेक्ट हुए दूसरे खिलाड़ियों से भी काफी कुछ सीखने में मदद मिली। अब मेरी नजर अंडर-19 में सिलेक्शन पाने पर होगी। मुकाबला टफ होगा और कई चुनौतियां आएंगी। लेकिन मैं ऐसे ही लगन से खेलूंगी और अंडर 19 में भी राजस्थान को रिप्रजेंट करूंगी। कई बार ट्रेनिंग मिस हुई, सिलेक्शन नहीं होने से निराश थी कविता ने बताया- बीते दो-तीन साल से मैं मनोज सर के साथ अंडर-15 के लिए ट्रायल दे रही थी। लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से सिलेक्शन नहीं हो पाता था। इससे इतनी हताश हुई कि कई बार ट्रेनिंग भी मिस कर दी। एक डर यह भी था कि अंडर-15 ट्रायल के लिहाज से इस साल मेरी उम्र 14 साल हो गई थी। सिलेक्शन को लेकर काफी नेगेटिव ख्याल आ रहे थे। लेकिन कोच सर ने लगातार मोटीवेट किया और मुझे ट्रेनिंग से जोड़े रखा। पूरे एक साल डटकर मेहनत की। सप्ताह भर पहले कोच सर के साथ बस में ब्यावर से जयपुर ट्रायल देने पहुंची। सारे रास्ते उन्होंने मुझे लाइन और फुल लेंथ से डिलीवरी के लिए समझाते रहे। उनका कहना था कि यह तेरा ही नहीं मेरा भी आखिरी चांस है। हम कई साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं और अब रिजल्ट देना जरूरी है। परिवार और गांव का भी प्रेशर था। ट्रायल के समय मैंने फोकस के साथ बॉलिंग की। जब फाइनल लिस्ट में मेरा नाम आया तो खुशी का ठिकाना नहीं था। मुझसे जो परिवार और कोच सर को उम्मीद थी उस पर मैं खरी उत्तरी इसकी मुझे ज्यादा खुशी है। पहले फटे जूतों से करती थी प्रैक्टिस, अब प्रॉपर किट से हुआ सपना साकार कविता ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि पहले फटे जूतों के साथ गांव में ऊबड़-खाबड़ पिच पर ट्रेनिंग करती थी। प्रैक्टिस करने के लिए जगह नहीं थी, सामान भी पुराना हो गया था। गांव में भामाशाह के सहयोग से एडवांस किट और डाइट उपलब्ध करवाई। सीखने का बेहतर माहौल मिलने से अच्छा परफॉर्म कर सकी। बॉलिंग स्पीड ठीक है। परिवार और गांव की याद आती है? इस सवाल पर कविता काफी इमोशनल हो जाती हैं। हालांकि खुद को संभालते हुए वो सवाल के जवाब में गर्दन झुका लेती हैं। कविता कहती हैं कि बीते साल सिलेक्शन न हो पाने पर वह काफी निराश हुई थी। इस साल के लिए उन्होंने खूब मेहनत की और अपनी कमियां पर काम किया। कोच बोले- मैंने कहा था, हमारे पास आखिरी मौका है कविता के कोच मनोज सुनारिया बताते हैं- पिछले साल भी कविता ने परफॉर्मेंस में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। ट्रायल के दौरान टॉप-20 तक पहुंची। लेकिन फाइनल सिलेक्शन नहीं हुआ। इस निराशा ने हम दोनों को भीतर तक तोड़कर रख दिया था। रोते हुए कविता ने मुझसे यही पूछा था- ‘मैंने अपना बेस्ट दिया, फिर भी मेरा सिलेक्शन क्यों नहीं हुआ?’ मनोज सुनारिया बताते हैं- सुबह 5 बजे मैदान पहुंचना, 14 साल की लड़की को घंटों प्रैक्टिस कराना…दूसरे जिलों में टूर्नामेंट्स के लिए ले जाना। इन सब पर लोगों को कड़ा एतराज था। लेकिन हमें मालूम था- अगर इस बार चयन नहीं हुआ, तो आगे रास्ता और मुश्किल हो जाएगा। हमने हार नहीं मानी। प्रैक्टिस में जुटे रहे। एक साल तक कविता के बॉलिंग एक्शन, लाइन-लेंथ और रन-अप पर काम किया। ट्रेनिंग जारी रहने से धीरे-धीरे आत्मविश्वास लौट आया। आज कविता RCA की वीमंस अंडर-15 टीम में चुनी गई हैं, ये उसी लगन का नतीजा है। गांव की बच्चियों के लिए प्रेरणा बनेगा कविता का सिलेक्शन कोच मनोज बताते हैं- ब्यावर-भीलवाड़ा बेल्ट में टैलेंट की कमी नहीं है। लेकिन मेरी 6 से ज्यादा ट्रेंड खिलाड़ी 12वी कक्षा तक आते आते शादी कर ससुराल की जिम्मेदारियों में जुट गईं। वे आज भी क्रिकेट को मिस करती हैं। कविता के आगे बढ़ने से अब गांव वालों में भी जागृति आ रही है। वो अब पहले से ज्यादा भरोसा और सहयोग करने लगे हैं। मुझे उम्मीद है कि आने वाले सालों में अकेले ब्यावर या भीलवाड़ा से ही नहीं बल्कि राजस्थान के छोटे छोटे गांव ढाणियों से टैलेंट बुलंदियां छुएगा। तीन साल पहले थामी बॉल…पहली चार गेंदों ने कहानी बदल दी 2022 में खेड़ेला के सरकारी स्कूल के उबड़-खाबड़ मैदान पर मनोज सुनारिया सीनियर लड़कियों को क्रिकेट की प्रैक्टिस करवा रहे थे। तभी 5वीं में पढ़ने वाली कविता भील ने कोच से बस इतना कहा कि - मुझे भी गेंद डालनी है। मनोज ने लेदर बॉल उनके हाथ में थमा दी। कविता को सीम, लाइन-लेंथ, रन-अप या एक्शन का कोई अनुभव नहीं था। लेकिन जैसे ही उन्होंने गेंद थामी, विकेट से कुछ कदम पीछे हटकर रन-अप लिया और हाई-आर्म एक्शन से पहली बॉल फेंकी, मैदान में खड़ी सीनियर खिलाड़ी का विकेट दूर जा गिरा। कविता की रफ्तार ने मनोज को चौंका दिया। तीन और बल्लेबाज बोल्ड कर कविता ने एक ही ओवर में चार विकेट चटखा दिए। यहीं कोच मनोज को एहसास हुआ कि उनके हाथ एक ऐसा टैलेंट लगा है, जिसे बस दिशा देने की ज़रूरत है, गति तो उसमें पहले से थी। उस दिन के बाद से मनोज सिर्फ ट्रेनिंग नहीं, एक भरोसा गढ़ रहे हैं। उनकी देख-रेख में कविता ने भीलवाड़ा जिले की ओर से खेलते हुए डिस्ट्रिक्ट सर्किट में लगातार प्रभावी प्रदर्शन किया। स्थानीय टूर्नामेंट्स से लेकर राजस्थान रॉयल्स की ओर से आयोजित ग्रामीण मैचों तक, उनकी गेंदबाजी में अब तुक्का नहीं, तैयारी दिखती है। तीन साल पहले चार गेंदों से शुरू हुआ सफर आज राजस्थान की अंडर-15 टीम तक पहुंच चुका है। पिता दिहाड़ी मजदूर, बेटी के खेलने से रहते थे नाराज कविता के पिता हरिलाल भील गुजरात में कुआं खोदने का काम करते हैं। घर के पीछे थोड़ी जमीन है जिससे खाने के लिए अनाज हो जाता है। छोटा भाई दुकान पर काम करता है और मां मीरा देवी घरेलू कामकाज संभालती हैं। कविता के क्रिकेट के शौक को शुरू शुरू में घरवालों ने नकार दिया था। कोच मनोज के लगातार समझाने के बाद परिवार खासकर उनके पिता क्रिकेट खेलने की कविता के दृढ़ निश्चय के आगे झुके। मिचेल स्टार्क सा एक्शन, वीडियो से आई थी चर्चा में करीब 2 साल पहले कविता अपने बॉलिंग का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आने से चर्चा में आई थी। कविता का बॉलिंग एक्शन हूबहू ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज मिचेल स्टार्क जैसा था। गांव की पिच पर भी कविता 100 से ज्यादा की रफ्तार से बॉल फेंक रही थी। सुशीला मीणा की तरह नहीं बदली किस्मत आपको याद दिला दें, प्रतापगढ़ के धरियावद गांव की सुशीला मीणा का बॉलिंग करते हुए एक वीडियो मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने शेयर किया था। तब उन्होंने सुशीला के बॉलिंग एक्शन की तुलना जहीर खान से की थी। इसके बाद तो सुशीला मीणा को प्रदेश की उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी समेत कई राजनेताओं ने कॉल कर बधाई दी और मदद का आश्वासन दिया। बाद में उन्हें जयपुर में कोचिंग के लिए बुलाया गया। लेकिन कविता भील इतनी खुशनसीब नहीं रही। कविता के बॉलिंग एक्शन का वीडियो चर्चा में आया। लेकिन उन पर न तो किसी बड़े क्रिकेट सेलिब्रिटी की नजर पड़ी न ही किसी नेता अधिकारी ने कोई मदद की। गांव की उसी पथरीली पिच पर फटी पुरानी गेंद के साथ प्रैक्टिस करती रही। अलग-अलग जिलों और जयपुर में स्टेट लेवल ट्रायल में हिस्सा लेती रही। कविता को मेहनत ने आखिर इस साल उन्हें अंडर 15 में खेलने का अवसर दिया। गांव के ही भामाशाह ने की मदद कोलकाता जा रही कविता का सारा खर्च उठाने वाले भामाशाह राजमल मेवड़ा ने बताया- कविता ने खेल के जरिए जो उम्मीद जगाई है, उसने हमारे गांव को नई पहचान दी है। मैं आग भी उसकी मदद करता रहूंगा। .... कविता के संघर्ष से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... टुकड़े जोड़कर बनाया नेट:कुआं खोदने वाले की बेटी की कमाल गेंदबाजी, मिचेल स्टार्क की तरह चटकाती है विकेट पथरीली जमीन पर विकेट गाड़कर बनी 22 गज की पिच। 15 कदम का रन-अप और कोच के इशारे मिलते ही दौड़ी। बल्लेबाज उस गेंद को समझ पाता, उससे पहले लेदर की लाल बॉल ने गिल्लियां उखाड़ फेंकी। पूरी खबर पढ़िए...