बायो सीएनजी उत्पादन का पहला प्लांट बनेगा बाड़मेर में:32 करोड़ के प्लांट में नेपियर से 6.50 टन रोज बनेगी बायो सीएनजी
बायो सीएनजी गैस उत्पादन के लिए नेपियर घास पर आधारित प्रदेश का पहला ऐसा बायो सीएनजी प्लांट बाड़मेर जिले में लग रहा है। यह रोज 6.50 टन उत्पादन करेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पूरा प्रोजेक्ट ईको फ्रैंडली है। इससे बायो सीएनजी निकलने के बाद लिक्विड और सूखा जो वेस्ट निकलेगा, वह फसलों के लिए सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली जैविक खाद के रूप में काम आएगा। सांचौर की एक निजी कंपनी ने चौहटन क्षेत्र के कोनरा व ईटादा के बीच करीब 28 बीघा जमीन पर बायो सीएनजी का प्लांट विकसित किया जा रहा है। यह प्लांट करीब 32 करोड़ रुपए में तैयार होगा। दावा है कि इसका निर्माण करीब 8 माह में हो जाएगा। फाउंडेशन पूरा होने के बाद बड़े टैंक बनेंगे, जिसमें नेपियर घास का प्रोसेस करके बायो सीएनजी बनाई जाएगी। नेपियर घास के लिए कुछ किसानों से एग्रीमेंट किया है और उनके खेतों में घास के बिजाई और डंठल रोपाई करवाई है। कंपनी ने यहां पर नेपियर घास की गुणवत्ता की पहले जांच की, उसके बाद ही इस क्षेत्र में बायो सीएनजी प्लांट लगाने का निर्णय किया। 6 किसानों से 30 हेक्टेयर भूमि पर नेपियर घास उगाने का एग्रीमेंट धनाऊ तहसील में निजी कंपनी ने बायो नेपियर घास उगाने के लिए 6 किसानों से 10 साल के लिए एग्रीमेंट किया है। यह घास कुल 30 हेक्टेयर जमीन पर उगाई जा रही है। करीब आठ से दस माह में जब तक प्लांट तैयार होगा, तब तक घास भी परिपक्व हो जाएगी। इन किसानों को 75 टन प्रतिदिन नेपियर घास देनी होगी और 1 हजार रुपए प्रति टन की कीमत से उन्हें हर माह रुपए दिए जाएंगे। चौहटन क्षेत्र की प्रकृति और परिस्थिति देखने के बाद यहां पर नेपियर घास का टेस्ट करवाया गया। इसके बाद यहां पर बायो सीएनजी गैस का प्लांट लगाने की योजना बनाई। लिक्विड व सूखी खाद भी बनेगी,यह ज्यादा उपजाऊ नेपियर घास और इसके वेस्टेज के अलावा गोबर, सड़ी गली सब्जियों सहित अन्य वेस्ट फसलों से बायो सीएनजी का उत्पादन किया जाएगा। 6.50 टन रोज सीएनजी उत्पादन होने के बाद इसका जो वेस्ट निकलेगा, वह फसलों के लिए उपयोगी है। यह लिक्विड और सूखा दोनों फॉर्मेट में मिलेगा। इसे किसान खेतों में छिड़ककर अपनी फसलों का उत्पाद बढ़ा सकते हैं। यह खाद केंचुआ खाद से कई गुणा ज्यादा पौष्टिक होती है। नेपियर घास उगाने से आसपास के किसानों को अच्छी कीमत मिलने के साथ ही स्थायी रोजगार मिलने की भी संभावना बढ़ गई है। यह प्रोजेक्ट ग्रीन और ईको फ्रैंडली है। भास्कर एक्सपर्ट -डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक, जोधपुर नेपियर घास डेढ़ से दो माह में तैयार हो जाती है। एक साल में छह से सात बार कटाई कर सकते हैं। इसके लिए हरी, ताजी घास सबसे बेहतर मानी जाती है। घास के एक से दो सेमी. के टुकड़ों में काटते हैं ताकि गैस उत्पादन तेज हो सके। कटे हुए घास के टुकड़ों को पानी में घोल बनाते हैं, जिसका अनुपात डेढ़ गुना रहता है। यानि एक किलो घास के टुकड़े तो डेढ़ लीटर पानी होता है। यह घोल गाढ़ा, लेकिन बहने योग्य होता है। इस घोल को बायो गैस प्लांट (डाइजेस्टर) में डाला जाता है। इसमें ऑक्सीजन नहीं होती है। इसे बैक्टीरिया तीस से चालीस दिन में घास को तोड़ते हैं। इसमें मीथेन गैस 55 से 65 फीसदी पैदा होती है, इसके अलावा अन्य गैसों सहित नमी होती है। यह कच्ची बायोगैस होती है। इसे साफ करने के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड व नमी को हटाया जाता है। इसके बाद शुद्ध मीथेन गैस बचती है। इसे 200-250 बार प्रेशर पर कम्प्रेस कर सिलेंडरों में भरा जाता है और यही बायो सीएनजी होती है। इसके बाद जो वेस्ट पदार्थ बचता है, वह जैविक खाद होती है।