पूर्व न्यायिक अधिकारी की पेंशन याचिका खारिज:6 साल की नौकरी में वकालत का अनुभव जोड़कर मांगी पेंशन
राजस्थान हाईकोर्ट ने अनिवार्य सेवानिवृत्त पूर्व न्यायिक अधिकारी एस.एन. देराश्री को पेंशन का लाभ देने से इनकार कर दिया है। जस्टिस अरुण मोंगा और जस्टिस फरजंद अली की खंडपीठ ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में स्पष्ट किया कि पेंशन के नियमों में संशोधन का उद्देश्य पहले से मिल रही पेंशन को 'रिवाइज' (संशोधित) करना होता है, न कि उन लोगों के लिए नई पात्रता पैदा करना जो इसके हकदार ही नहीं थे। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील को खारिज करते हुए कहा कि 2023 का वित्त विभाग का आदेश केवल मौजूदा पेंशनरों की पेंशन में सुधार के लिए है, यह उन लोगों को पेंशन का हक नहीं देता जिन्होंने न्यूनतम सेवा अवधि (10 वर्ष) पूरी नहीं की। मामले की पृष्ठभूमि: पहले वकील, फिर जज बने 1. नियुक्ति और पदोन्नति: भीलवाड़ा के भूपालगंज निवासी याचिकाकर्ता एस.एन. देराश्री वर्ष 1998 में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) नियुक्त हुए और साल 2002 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश कैडर में पदोन्नत होकर कोटा में 'स्पेशल जज, एसीडी (ACD) केसेज' के पद पर तैनात हुए। 2. रिश्वत का आरोप और निलंबन (Suspension): मई 2003 में इंदर सिंह मंडलोई नामक व्यक्ति की शिकायत पर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। उनके खिलाफ दो मुख्य आरोप पत्र (Memorandum) जारी हुए। 3. जांच और नाटकीय मोड़: विभागीय जांच (Departmental Proceedings) के बाद सरकार ने इन दोनों कार्यवाहियों को बंद (drop) कर दिया। इसके परिणामस्वरूप: 4. कानूनी लड़ाई: देराश्री ने अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिकाएं खारिज हो गईं और उनकी सेवानिवृत्ति का आदेश अंतिम मान लिया गया। याचिकाकर्ता का तर्क: वकालत का अनुभव जोड़ें याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 2015 में न्यायिक सेवा नियमों में संशोधन हुआ और 13 जुलाई 2023 को वित्त विभाग ने एक आदेश जारी किया। इसके तहत न्यायिक अधिकारियों को 10 साल तक की वकालत (Bar Practice) का लाभ पेंशन के लिए दिया जा सकता है। उन्होंने मांग की कि उनकी 6 साल की न्यायिक सेवा में वकालत के 10 साल जोड़कर कुल 16 साल की सेवा मानी जाए और पेंशन दी जाए। कोर्ट का फैसला: पहले पात्रता, फिर रिविजन इस मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि "पेंशन एक वैधानिक अधिकार है, न कि कोई खैरात। पात्रता एक अनिवार्य शर्त है।" चूंकि याचिकाकर्ता ने 10 साल की न्यूनतम सेवा पूरी नहीं की थी और पिछली याचिकाओं में भी यह तय हो चुका था, इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा: