फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के शक में RPSC ने करवाई जांच:SMS हॉस्पिटल के मेडिकल बोर्ड ने इंटरव्यू से रोका, AIIMS की टीम ने योग्य ठहराया
ब्यावर से विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी और भीलवाड़ा जिले के करेड़ा में तैनात नायब तहसीलदार कंचन चौहान के फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट का मामला सुर्खियों में है। फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के जरिए सरकारी नौकरी हासिल करने के बढ़ते मामलों के बाद दोबारा से मेडिकल जांच करवाई जा रही है। इस बीच एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें RPSC ने दोबारा मेडिकल करवाई तो एक अभ्यर्थी दिव्यांग श्रेणी के लिए अयोग्य पाया गया। कोर्ट के दखल के बाद हायर लेवल पर जांच हुई तो अभ्यर्थी दिव्यांग श्रेणी के लिए योग्य साबित हुआ। क्या है पूरा मामला और कैसे उस शख्स की जीत हुई पढ़िए इस रिपोर्ट में.... फर्जी सर्टिफिकेट के चलते सतर्क हैं एग्जाम कराने वाली एजेंसियां राजस्थान में पिछले दो साल में नकल से एग्जाम पास करने के साथ ही फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के जरिए नौकरी हासिल करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। एसओजी ऐसे कार्मिकों के खिलाफ चुन-चुन कर कार्रवाई कर रही है। यही कारण है कि दिव्यांग कोटे से नौकरी पाने वाले अभ्यर्थियों का संदेह के आधार पर दोबारा मेडिकल परीक्षण कराया जा रहा है। इन सब के बीच एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां मेडिकल बोर्ड ही गच्चा खा गया। मेडिकल बोर्ड ने जिसे दिव्यांग श्रेणी के लिए अयोग्य मान लिया। वो अब हायर लेवल पर जांच के बाद दिव्यांग श्रेणी के लिए योग्य हो गया है। सिलसिलेवार तरीके से समझिए कैसे हुआ पूरे मामले का खुलासा? ये मामला बीकानेर के रहने वाले विजय कुमार मीणा का है। विजय ने दिव्यांग कोटे से राजस्थान राज्य एवं अधीनस्थ सेवाएं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा-2023 पास कर ली। 2 जनवरी 2025 को रिजल्ट आने के बाद आरपीएससी ने इंटरव्यू (साक्षात्कार) से पहले दिव्यांगता का सर्टिफिकेट मांगा। इसके बाद दिव्यांगता साबित करने के लिए मेडिकल परीक्षण के लिए बुलाया। प्रदेश के सबसे बड़े एसएमएस हॉस्पिटल के मेडिकल बोर्ड के सामने इसी साल 3 जुलाई को दिव्यांगता की जांच की गई। जांच के बाद 15 सितंबर को आरपीएससी के एक पत्र से विजय को बड़ा झटका लगा। आरपीएससी ने पत्र लिखकर दी थी अयोग्यता की जानकारी आरपीएससी ने अपने पत्र में बताया था- मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आप एचएच श्रेणी के लिए पात्र नहीं हैं। आयोग द्वारा आपकी मूल कैटेगरी एसटी-एनजी-आरजी के अंतर्गत प्रारंभिक-मुख्य परीक्षा के प्राप्तांकों (कुल मार्क्स) की जांच किए जाने पर आप मूल वर्ग के कट ऑफ मार्क्स में नहीं आने के कारण आपको साक्षात्कार के लिए अयोग्य पाया गया है। विज्ञापन की शर्तों एवं संबंधित नियमों के तहत आपकी अभ्यर्थिता रद्द करते हुए आपको उस परीक्षा एवं साक्षात्कार के लिए अपात्र किया जाता है। दिव्यांगता के लिए अयोग्य पाए जाने पर किया हाईकोर्ट का रुख सरकारी नौकरी में दिव्यांग कोटे का लाभ लेने के लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत दिव्यांगता जरूरी होती है। एसएमएस हॉस्पिटल के मेडिकल बोर्ड की जांच में विजय की दिव्यांगता 40 प्रतिशत से कम आंकी गई थी। इसके बाद आरपीएससी ने विजय को हार्ड हियरिंग श्रेणी के लिए पात्र नहीं माना था। विजय ने हार मानने की बजाय 3 अक्टूबर को हाईकोर्ट का रुख किया। अयोग्यता को चैलेंज करते हुए अपनी हार्ड हियरिंग की जांच हायर लेवल पर कराने का आग्रह किया। हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए 13 अक्टूबर जोधपुर एम्स के मेडिकल बोर्ड के सामने शारीरिक अक्षमता की जांच कराने के निर्देश दिए। याचिकाकर्ता विजय के एडवोकेट अजगर खान ने बताया- हाईकोर्ट के निर्देशों पर जोधपुर एम्स मेडिकल बोर्ड ने जांच की तो विजय की दिव्यांगता को 40 प्रतिशत से ज्यादा मानते हुए उसे साक्षात्कार के लिए योग्य माना गया। उन्होंने बताया कि कोर्ट के निर्देशों के बाद दिव्यांगता 40 प्रतिशत से ज्यादा होने के बाद विजय का आरपीएससी ने साक्षात्कार भी ले लिया है। एग्जाम में उसकी मेरिट भी तय हो गई है। दो तरीकों से तय होती है बहरेपन की दिव्यांगता ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. मोहनीश ग्रोवर ने बताया कि सुनने की क्षमता को जांचने के लिए दो तरीके हैं। सुनने की क्षमता कम होने का अंदेशा होने पर बेसिक लेवल पर ऑडियोमेट्री टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में मरीज को अलग-अलग आवाज कुछ फ्रीक्वेंसी में सुनाई जाती है। मरीज के रिस्पॉन्स के आधार पर पता चलता है कि उसे कितना सुनाई दे रहा है। लेकिन इस टेस्ट में अगर मरीज जानबूझ कर कह दे कि उसे सुनाई नहीं दे रहा है तो उसे पकड़ा नहीं जा सकता है। इसको कन्फर्म करने के लिए दूसरी जांच होती है। जिसे बेरा जांच कहा जाता है। इसमें मरीज के कान में आवाज दी जाती है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक तौर पर चेक किया जाता है। उसी से कंफर्म हो जाता है कि मरीज को सुनाई दे रहा है या नहीं। दिव्यांगता का प्रतिशत निकालने के लिए एक पूरा मेडिकल गजट होता है। कानों में आवाज की फ्रीक्वेंसी के एवरेज के अनुसार मेडिकल गजट के पैरामीटर्स के आधार पर प्रतिशत निकाला जाता है। इसके लिए दोनों कानों को चेक किया जाता है।




